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________________ कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ___ शब्द में अर्थ कहीं से प्राता नहीं है, बल्कि उसमें से ही उदभावित होता है । यथार्थ में शब्द की सत्ता अर्थ बोध में निहित है । 'मुलाब' पाब्द कहने से केवल गुलाब के फूल का ही नहीं वरन् गुलाबी रंग का भी बोध होता है। यह अर्थ बोध स्वयं शब्द में निहित है । वाक् और अर्थ दोनों ही रांप्रक्त है-एक दूसरे से अभिन्न । संस्कृत विद्वान पाणिनि ने लिखा है --.''सशधाः स्पन भावेन भवति, सः तेषामर्थः अर्थात् सभी पाद अपने भाव में रहते हैं जो उनका प्रय कहा जाता है । शब्द से, शब्द और अर्थ दोनों की प्रतीति होती है, परन्तु प्र पहले से ही सृष्टि में विद्यमान है। इसलिये शब्द अर्थ का उत्पादन न होकर ज्ञायक पा प्रतीति कराने वाला है। सक्षेप में-धान्द से अर्थ भिन्न नहीं है । जिस प्रकार शिन से शक्ति भिन्न नहीं है हमें प्रर्थ का पता शब्द से ही चलता है । शब्द से ही अर्थ समझ में आता है।' ११. मुहावरे और लोकोक्तियां रचना को अधिक सजीव एवं प्राणमान बनाने के लिये भाषा में लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग किया जाता है । साधारण वाक्यों की अपेक्षा मुहावरेवार वाक्यावनी बावकों को अत्यधिक प्रमावित करती है। कभी-कमी तो एक ही लोकोक्ति हमें लम्बी-चौड़ी व्याख्या के श्रम से बचा लेती है। अत: इस कथन में किसी भी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं है कि लोकोक्तियों और मुहावरों में भाव को श्रोताओं के हृदय तल तक पहुंचाकर उन्हें गुदगुदा देने तथा प्रभावित करने की अदभुत क्षमता होती है। अतः भाषा में अभिव्यंजना-कौशल, प्रगट करने के लिये अधिक से अधिक लोकोक्तियों एवं मुहावरों का प्रयोग किया जाना चाहिए । महाचरा तथा लोकोक्ति में अन्तर :-मुहावरा तथा लोकोक्ति दोनों में पर्याप्त अन्तर है । मुहावरा एक ऐसा बास्यांश है, जिसके शब्दों का साधारण अर्थ (याच्यार्थ) न लगाकर एक विशेष अर्थ (लक्ष्यार्थ) लगाया जाता है। जैसे ----वह तो पास्तीन का माप है । यहां, 'धास्तीन का सांप' ग्रास्तीन में सांप पालना नहीं है। किन्तु इस नाक्यांश का अर्थ है-एक ऐसा आदमी जो ऊपर से मित्र तथा मीतर से शत्रु हो । इस घन में कितनी अधिक लाक्षणिकना है। यह लाशगिकता सीधे-सादे शब्दों से पंदा नहीं होती। यदि कथन में चमत्कार लाना है तो मुहावरों का प्रयोग अपेक्षित है, जो भाषा को सजीव बना देते हैं। १. गिरा प्ररथ जल धोबि सम कहियत भिन्न न भिन्न । रामचरित मानस बालकांड, १८। धागाविव संपत्तो, वागर्थ प्रतिपत्त्ये। जगत् कि तिरो वरे, पार्वती परमेश्वरी । रघुवंश, १,१।। तुलसीदास रामचरित मानस, बालकांड, १८)
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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