SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व इसी प्रकार विश्लेषरण, लोक प्रसिद्धि, प्रत्ययों के प्रयोग से भी अर्थ परिवर्तन हो जाता है। चूंकि अर्थ- परिवर्तन की दिशा कभी अच्छे और कभी दूरे अर्थ की ओर प्रवाहित होती रहती है | अतः इन्हें अलग से श्रर्थं परिवर्तन की दिशाएं मानना यहीं है । १२८ प्रत्यय ऐसे अधिकारी शब्द या शब्दांश जो धातु या मूल शब्द के पश्चात् जुटकर उनका श्रयं परिवर्तन कर देते हैं, प्रत्य कहलाती हैं। जैसे मिठाई शब्द में वाला प्रत्यय जोड़ देने से 'मिठाई वाला' बन जाता है। इस प्रकार मिठाई और मिठाई वाला शब्दों के ग्रंथों में परिवर्तन हो जाता है। इसी प्रकार पढ़ना से पढ़ाई शब्द में भी अर्थ बदल जाता है। प्रत्यर्थी का स्वतंत्र प्रर्थ श्रर प्रयोग नहीं होता | केवल मूल पाद से जुड़कर ही ये भिन्न अर्थ के प्रतिपादक होते हैं। प्रत्यय सभी प्रकार के शब्दों के साथ सयुक्त हो जाते हैं । प्रत्ययों से निर्मित शब्दों के दो भेद होते हैं - कृदन्त और तद्धित । धातुयों के पीछे जो शब्द लगाये जाते हैं वे कृदन्त कहलाते हैं। जैसे- लिखना से लिखाई तथा धातुयों के अतिरिक्त संज्ञा, सर्वनाम, विषलेषण शब्दों में जो प्रत्यय लगाये जाते हैं तथा उनके लगाने से जो शब्द बनते हैं उन्हें तद्धि कहते हैं । जैसे दशरथ से दाशरथि, प्यार से प्यारा इत्यादि । हिन्दी प्रत्यय ( फक्त) --- भ - यह प्रत्यय अकारान्त धातुधों से जोड़ा जाता है, जिससे भाव-वाचक संज्ञाएं बनती हैं। जैसे लूटना से 'लूट' उछलता से 'उछलकूद' इत्यादि । श्रा- इस प्रत्यय के योग से भाववाचक संज्ञाएं बनती हैं जैसे घेरना से धैरा इत्यादि । इसी प्रकार श्राई, आऊ, आव, आप श्राव प्रावह, श्रावना, भावा, ग्रास, श्राहट, इयल, ई, इया, क, एरा, ऐसा आदि अनेक प्रत्यय है, जिनके संयोग से अनेक शब्दों में अर्थ परिवर्तन होता है । हिन्दी प्रत्यय ( तद्धित ) (१) भाववाचक (२) गुणवाचक ( ३ ) अपत्य वाचक (४) कर्तृवाचक (५) न्यूनवाचक इत्यादि अनेक प्रकार के तद्धित हैं, जिनके उदाहरण क्रमशः निम्न प्रकार हैं : : (१) बुढ़ापा (२) रंगीला ( ३ ) वासुदेव ( ४ ) दूधवाला (५) खटिया जिन शब्दों या शब्दाशों का धातु के पूर्व प्रयोग होता है, उन्हें उपसगं कहते हैं । तथा जिन शब्द या शब्दाशों का प्रयोग धातु के प्रांत में होता है, वे प्रत्यय कहे जाते हैं । संस्कृत और हिन्दी में शब्द के साथ प्रत्यय का संयोग प्राय: प्रांत में होता है । प्रकृति और प्रत्यय के योग से ही शब्द का निर्माण होता है ।
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy