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शिलाविण्य
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(१) अयं परिवर्तन
अर्थ परिवर्तन की प्रक्रिया से यद्यपि शब्द और अयं सदा किसी संदर्भ में परिस्थतिवश बदल जाते हैं, किन्तु वे अपने मूल अर्थ को नहीं छोड़ते इसलिये हजारों वर्षों के बाद भी उनका मूल स्रोत खोज लिया जाता है और उनकी वास्त विक स्थिति का पता चल जाता है । इस प्रकार अयं परिवर्तन की पद्धति से शब्द के इतिहास की जानकारी मिलती है ।
(२) अर्थ विस्तार
जन सामान्य शब्द विशेष अर्थ में और विशिष्ट शब्द सामान्य पर्थ में प्रयुक्त होता है, तब अर्थ विस्तार हो जाता है। अर्थ के विस्तार के कारण अर्थ अपने शाब्दिक अर्थ से अधिक बढ़ जाता है। "भतृहरि" ने बहुत विस्तार के साथ इसका विचार किया है | उनका कथन है कि विशेष की अविवक्षा और सामान्य की विवक्षा से प्रायः अर्थ विस्तार हो जाता है। जैसे—तेल 'शब्द' तिल के द्रवित सार को कहते थे, परन्तु अब - सरसों, मूंगफली, अलसी सोयाबीन यहां तक कि घासलेट को भी तेल कहने लगे । इसी प्रकार चाह अर्थ में चाय (४६८) जुधारी (४५५ ) चारि (४४६) स्वाल (४३२) लगन (४२६) गार (४१७) परत (४०४) भाटा (३०३) इत्यादि शब्दों के प्रयोग होने लगे। इस प्रकार मनुष्य जब काम करके बहुत थक जाता है, तत्र कहता है आज तो मेरा तेल ही निकल गया ।
(३) अर्थ संकोच
'श्रील' महोदय का कहना है कि जो राष्ट्र या जाति जितनी अधिक विकसित होगी, उसमें ग्रर्थं संकोच उतना ही अधिक होगा। यदि इस प्रकार से का संकोच न हो तो सभी शब्द सभी अर्थों के वाचक हो जायेंगे । अर्थ के संकोच में सास्कृतिक परिवर्तन विशेष महत्त्वपूर्ण माना जाता है (४) यथावेश
एक अर्थ के स्थान पर दूसरा अर्थ हो जाना ही प्रथादेश है। कभी-कभी, ज्ञात-अज्ञात रूप से विचारों के सम्पर्क के कारण गौा अर्थ से सम्बन्ध हो जाता है और वह अर्थं ही मुख्यार्थं बन जाता है। इस प्रकार एक अर्थ के स्थान पर दूसरा भ हो जाता हूँ | जैस गंवार शब्द का मूल अर्थ ग्रामीण है, किन्तु ग्राम जस्ता मूर्ख मनुष्य को गंवार कहती है । इसी प्रकार 'बुद्ध' शब्द का अर्थ बुद्धिमान है, किन्तु लोक में बुद्धिहीन व्यक्ति को 'बुद्ध' कहा जाता है। इस प्रकार अथादेश में अर्थ अपने मूल से भिन्न हो जाता है । उपसर्ग के विविध प्रयोगों से भी श्रर्थ में परिवर्तन लक्षित होने लगता है । जैसे कि संस्कृत की 'द' धातु से हर और हार शब्द निष्पन्न होते हैं । 'हार' के पहले 'प्र' उपसर्ग जोड़ देने से 'प्रहार' 'वि' जोड़ देने से 'बिहार' 'मा' जोड़ दन से प्रहार 'सं' जोड़ देने से संहार, 'नी' जोड़ देने से नीहार' ग्रादि विभिन्न अर्थ के वाचक शब्द बनते हैं !