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कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
अर्थतत्व
१ प्रर्थ परिवर्तन की दिशाए २ अर्थ-विस्तार ३ अर्थ संकोच ४ अर्थादेश ५ प्रत्यय ६ उपसर्ग ७ समास - पूर्व-सगं १ परसर्ग १० ध्वनि-अर्थ ११ मुहावरे, लोकोक्तियां तथा अन्य प्रयोग
१ अर्थपरिवर्तन की दशा-यथार्थ प्रथं परिवर्तन की दिशाए पुरणं रूप से नियत नहीं की जा सकती, क्योंकि प्रथं परिवर्तन का मुख्य कारण मानव-मस्तिष्क है । उच्चरित एक ही शब्द का मानत्र-मस्तिष्क विभिन्न प्रर्य ग्रहण कर लेता है । इसका कारण यह है कि गध्द स्यूल होले हैं और अर्थ सूक्ष्म । प्रथं बौद्धिक होते हैं अत: उनमें सतत परिवर्तन होते रहते हैं | शब्दों की अपेक्षा अर्थ अधिक व्यापक होता है । कई बार शब्द-प्रयोग न होने पर भी संकेत मात्र ग्रहण किये जाते हैं।
'श्रील' महोदय के अनुसार अर्थ परिवर्तन की तीन दिशाएं मानी जाती हैं:--- १ अर्थ-विस्तार २ प्रर्थ-संकोच ३ प्रदेश
प्रायः प्रत्येक युग में शब्द और उनके अर्थ में कुछ न कुछ परिवर्तन होता रहता है । इसी प्रक्रिया में दरिया (नदी) शब्द गजराती और हिन्दी में समुद्र का वाचक हो गया है । संस्कृत का 'पास' शब्द अपभ्रश में प्राम अर्थ देने लगा और साहसिक (डाकू) शब्द, उर्दू-हिन्दी में साहसी (हिम्मती) भर्थ का वाचक हो गया प्रत्यन्त प्राचीन काल में संस्कृत में घणा का अर्थ 'पिघलना था' बाद में दा हो गया और प्रब वह नफरत का अर्थ देने लगा। इसी प्रकार 'पाखंड' शब्द पहले एक संप्रदाय था, बाद में उस शब्द में कुछ परिवर्तन हया तो पाप का खंडन करने वाला अर्घ देने लगा और प्राज उसका प्रथे डोंग या आडंबर है।।