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शिल्प सम्बन्धी विश्लेषण
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लक्ष्मी, व्यंग्यार्थ, तीक्ष्ण सूक्ष्म । तीन व्यंजन वाले शब्द-स्वातन्त्र्य, वत्स्य इत्यादि ।
बलाघात
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-त्याग, बुद्धि परजाय कु । यागबुद्धि, परजाय कू ं ।
स्थाग बुद्धि परजान, क्रू
ये मेरे गाड़ी गड़ी |
१.
ये 'मेरे', गाड़ी गढ़ी | ये मेरे 'गाढ़ी, गढ़ी' |
सुरलहर करो नाहि कराग । करो नाहि कछु राग ? करो नाहि कछु राम ।
संगम - तोरी, मोरी लाज ।
नोरीमोरी लाज ।
रोको, मत जाने दो । रोकोमत, जाने दो।
यहां तोरी शब्द में चमत्कार है। हिन्दी की कुल ध्वनियां ५६ हैं । 'उ' और 'ल' स्वतंत्र ध्वनियां हैं । कवि की रचनाओं में भी 'उ' और 'ल' स्वतंत्र ध्वनियां हैं । यद्यपि ये केवल स्वर, मध्य तथा पदान्न में ही पाई जाती हैं, पद के बादि में नहीं । ठीक यहीं बात 'एल' ध्वनि के विषय में भी कही जा सकती है। यह भी इन दोनों बोलियों में परिनिष्ठित खड़ीबोली की तरह 'न' का ध्वन्यंग नहीं है तथा यह ध्वनि कथ्य खड़ी बोली तक में पाई जाती है ।
के विषय में यह ध्यान देना आवश्यक है कि ध्वनि का अभिप्राय केवल भाषण ध्वनि से है । यह भाषा की अत्यन्त सूक्ष्मधारा है | संवेदनशील और अभ्यासगत है कि ध्वति संयोगों के उच्चारों को सुनते ही उसका अर्थ होने लगता है । शब्द में अर्थ कहीं से याता नहीं है अपितु उसी में है ।
संक्षेप में इतना ही कहना है कि ध्वनियों के परिवार को ध्वनिग्राम कहा जाता है । ये ध्वनियां किसी परिधि वा परवेश तक उच्चारगत अर्थ की दृष्टि से भिन्न प्रतीत नहीं होतीं । इसलिये सुनने वाला परिचित ध्वनि के रूप में ही उसे सुनता है । ध्वनिग्राम स्वन प्रकारों का समूह है जो ध्वन्यात्मक दृष्टि से समान तथा परिपूरक, वितरण या मुक्त परिवर्तन में होते हैं । 1
डा० देवेन्द्रकुमार शास्त्री भाषा शास्त्र तथा हिन्दी भाषा की रूपरेखा पृ० १०३