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कविवर बुधज : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
कर्ता कारक-में, में । कर्मकारक-क-व संप्रदान कारक-जु', कों, के, कें । करण व अपादान–सों, सू, ते, ते । सम्बन्ध कारक-को, के (पुल्लिंग), स्त्रीलिंग की । प्रधिकरण कारक-में, में, पे, गौ ।
विशेषण प्रायः खड़ी बोली की भांति ही होते हैं, किन्तु पुल्लिग प्रकारान्त शब्द यहां प्रौकारान्त हो जाते हैं । इनके तिर्यक रूप ॥क बचन के रूप से प्रथया ए और पुल्लिंग बहुवचन के रूप ए, ऐ या ए प्रत्यान्त होते हैं । क्रिया रूप
वर्तमान में, ह। भूत-में था या हती। एकवचन
बहुवचन
एकवचन (स्त्री)
एकवचन (पु०) हो । हो । बहुवचन (पुरु)
बहुवचन (स्त्री)
संक्षेप में, कविवर बुधजन ने जिस देश भाषा का प्रपनी रचनात्रों में प्रयोग किया है, यह टूढारी (जयपुरी) भाषा कही जाती है। यही उस प्रदेश की तत्कालीन लोक प्रचलित भाषा भी। इसमें व्याकरण के निशेष बन्धन नहीं थे । अत: जो लोग व्याकरणादि से अपरिचित थे, वे भी भली भांति समझ सकते थे। कवि के साहित्य में तत्सम, और देशी भाषा के शब्द मिलते हैं। इतना ही नहीं, अन्य भाषानों के देशी-विदेशी लोक-परंपरा के माध्यम से प्राधगत शब्द भी कदिवर बुधजन की रचनाओं में भली-भांति परिलक्षित होते हैं।
जहां तक भाषा-शिल्प का प्रश्न है, कवि ने विभिन्न-धाराओं से समागत बोलचाल की शब्द सम्पत्ति से भरपूर सहज, स्वाभाविक पदनामों की रचनाफर भाषा को एक विशिष्ट कलेवर प्रदान किया है। (२) ध्वनि प्रामीय प्रक्रिया
ध्वनि भाषा का मूल रूप है । हम जो भी उछमारण करते है, यह सब