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________________ शिल्पी विश्लेषण १२१ कविवर बुधजन ने अपनी रचनाओंों में प्रचलित लोकोक्तियों एवं मुहावरों के प्रयोग भी यथा स्थान किये हैं, जो प्रत्यत्र दृष्टव्य हैं। यथा--- (१) जिससे अन्न खादे तिसौ मन्न हुवे | (२) कर्द घी घग्णां, कर्द मुठी चरणां ॥ इत्यादि so धीरेन्द्र वर्मा ने अपने 'हिन्दी भाषा का इतिहास' में शौरसेनी अपभ्रंश से राजस्थानी भाषा का विकास माना है। वास्तव में राजस्थानी भाषा में 'ड' वर्ण की बहुलता है | बहुवचन के अन्त में भा जाता है । यथा तारा (तारों) रातां (रातों) मातां (बातों) । को के स्थान पर ने न हम के लिये म्हें, चलसू (चलूगा) जानू' (जाऊंगा) चलसी (चलेगा ) इत्यादि । 1 भाषाओं के सम्वन्ध में निम्न लिखित चार्ट से यह स्पष्ट हो जायेगा कि हिन्दी प्रदेश की भाषाएं किस प्रकार एक दूसरे से सम्बद्ध हैं । हिन्दी प्रदेश की भाषाएं (मध्यदेश) T पूर्वी बोलिया पश्चिम बोलियां T T अवधी छत्तीसगढ़ी भोजपुरी बिहारी राजस्थानी ब्रज बुदेवी पहाड़ी खड़ीबोली I मारवाड़ी ढूंढारी मानवी मैत्राती राजस्थानी पक्ष- रचनात्मक संगठन में भी कुछ समानताएं देखी जा सकती हैं कर्ता में द, कर्म में कु, करण में से, संप्रदान में ताई, कू, अपादान में से, ते सम्बन्ध में को, का, की, रो, रा, री, अधिकरण में मां । पूर्वी राजस्थानी में तो 'त' (हिन्दी ने) कर्त्ता कर्म तथा संप्रदान तीनों पाया जाता है इसमें सहायक क्रिया 'छे' पाई जाती हैं । भूतकालिक कृदन्त वाले रूप, राजस्थान में थो ( ब०व०या) प्रत्यव वाले पाये जाते हैं । यथा चल्यो, गयो । बुधजन की रचनाओं में बज भाषा व राजस्थानी का सम्मिश्र समावेश देखा जा सकता है । ब्रज भाषा का संक्षिप्त व्याकरण निम्न प्रकार दृष्टव्य है— १. डॉ. जगदीश प्रसाद हिन्दी उद्भव विकास और रूप, पृ० सं० ६३, प्रथम संस्कररण, किताब महल, इलाहाबाव ।
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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