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कविवर बुधजन व्यक्तित्व एवं कृतित्व
मिलते हैं कि वे विदेशी प्रतीत ही नहीं होते। यहां तक कि कई संस्कृत शब्दों में ध्वन्यात्मक परिवर्तन ही नहीं हार वरन् उनमें पर्य-परिवर्तन के भी मनोरंजक दृष्टान्त मिलते हैं। इसमें तत्मम शब्द की अपेक्षा तदभव शब्द अधिक हैं। उन सबका विवरण प्रस्तुत करना गंभव नहीं है । यहा कतिपय विशिष्ट शब्दों को ही लिया जा रहा है, जो इस प्रकार है :
तत्सम शब्द-सरपति १६) प्रानंदघन (१४) माताप (१४) भानुप्रताप (१८) वचनामृत (२२) दीनानाथ (४२) प्रतिविम्बित (२१) पाषाण (१७८) साम्राज्य (८७) शून्ना (१२८) प्रतिथिदान (१७६) सुगुरू (२३५) रिपूधात (२८७) सुथा (३५६) अन्याय (२६) हितमित (४१०) उज्जवल (४६८) कोविद (५१४) ज्ञानामत (५४४) अपचर्ग (५८६ तद्भव शम्द-पदार्थ (पदारथ) प.सं. ८, तृषा (तस) ११, अर्गला (ग्रागल) ग्राहक (गाहक) लवण (लोण) तत्वार्थ (तत्वारथ) त्रिया (तिया) ७८, ज्वर (जुर) ६१, सर्वम्व (सरवस) ४५०, रत्न (रतन) १५, प्रगट (परगट) माग (मारग) ४६, मल्प (अलप) ३०७, निर्वाह (निरनाह) ६३, दर्शक (दरसक) ५२, इत्यादि।
देश शब्द-नातरि (२२१) पाली (२२१) बुगला (२२१) हुकमी (२५८) परेवा (३१५) मौत ४०५) इत्यादि । विवेशी शब्द
बिदेशी शब्द-मुसलमानों और अंग्रेजों के प्रभाव से आये हैं। राजस्थान पर मुसलमानों का शासन नहीं रहा, पर दिल्ली दरवार से उनका संपर्क रहा है, जिसके फलस्वरूप अनेक अरबी, फारसी के पाद राजस्थानी में प्रविष्ट हुए। इन्हें बोलने वाला ग्रामीण व्यक्ति यह अनुभव नहीं करता कि ये राजस्थानी के शब्द नहीं हैं । ये शब्द हिन्दी, उर्दू के माध्यम से, कुछ जनसंपर्क से और कुछ कचहरियों के माध्यम से राजस्थानी भाषा में घुलमिल गये हैं । यथा
दर्द (४६१) चकत (५८) मतलब (६२) मंगरूर (११४) गाफिल (३८५) जल्दी (५.१३) करार (इकरार) (उस्ताद) दरगा (दरगाह) जायदाद, तजुर्बा, दस्तखत, दुरूस्त, परवस, मतलब (६२) इत्यादि।
अग्रेजी शब्द-टाइम, पेंसिल, फोटू, पेंसन, अफसर, साइंस मिडिल, पुलिस मास्टर, मिनिट, अस्पताल, मीटिंग इत्यादि ।
राजस्थानी शब्द-वनरौ (५) बरजोरी (५) चंडार (३६) प्रबार (१२) दुखां की ख़ान (६६) खोसिलेय (२३५) कलाविना, पायसी (६३६) इत्यादि
टूढारी का क्षेत्र विभाजन
मोखावटी के अतिरिक्त पुरा जयपूर, किशनगढ़ तथा अलवर का अधिकांश भाग, अजमेर मेरवाड़ा का उत्तर पूर्वी भाग ।