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कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
___ जनसाधारण की हितकारी सामग्री प्रथमानुयोग में प्राप्त होती है । इसमें जीवन को प्रदान माने गाली निता सापणी प्रान मोली है। इससे बालक, स्त्री, ग्रामीण, जन साधारण का अकथनीय कल्याण होता है। संकट के समय धैर्य धारण, वमं पालन में तत्पर प्रात्मानों का वर्णन पढ़कर दुःखी हृदय को सास्वना प्राप्त होती है । उस विपत्ति की दिशा में सत्पुरुषों की जीवनवार्ता चन्द्रिका के समान प्रकाश तथा शान्ति प्रदान करती है। महापराण में लिखा है कि नरकामु का बंध होने पर व्यथित मन वाले श्रेणिक महाराज ने गौतम स्वामी से पुण्य कथा निरूपणार्य प्रार्थना की थी उसने वाहा था
'भगवान ! कृपा कर प्रारम्भ से शलाका पुरुषों की जीवन कथा कहिये । मेरे दुष्ट कार्यों का निवारण पुण्यकथा-श्रवण द्वारा सम्पन्न होगा।
विपत्ति की बेला में तत्वज्ञान का शुष्क उपदेश मन पर उतना असर नहीं करता है जितना उन महापुरुषों का पाख्यान, जिनने हंसते-हंसते विपत्ति के सागर को तिरा है । तत्वज्ञानी उपदेश देता है कि शरीर और प्रात्मा पृथक-पृथक हैं परन्तु उसका कथन शीघ्र समझ में नहीं प्राता । परन्तु जब हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि मात्म ध्यान में निमग्न साधुराज सुकुमाल स्वामी के शरीर का भक्षण स्यालिनी ने किया परन्तु साधुराज' सुकुमाल ध्यानस्थ रहे उनके इस चरित्र द्वारा उपरोक्त कथन कितना स्पष्ट होता है । इसीलिये स्वामी समन्तभद्र ने प्रथमानुयोग को बोधि अर्थात रत्नत्रय की प्राप्ति का कारण कहा है तथा उसे समाधि का भंडार बताया है ।
अपने पुर्ववर्ती प्राचार्यों की परम्परा के अनुसार कविवर बुधजन ने भी चारों अनुयोगों को पागम कहा है और प्रागम प्रमाण माना है। प्रथमानुयोग का ज्ञान भी सम्यग्ज्ञान है क्योंकि वह प्रागम है ।
इन पुराणों (प्रथमानुपोग के ग्रन्थों) के पढ़ने से तत्काल महान पुण्य का संचय होता है और अशुभ कर्मो की मिर्जरा हो जाती है। चूकि ये भी जिनबचन
तत्प्रसीव विभो वक्तुमामूलात्पावनां कथाम् ।
निस्क्रियो दुष्कृतस्यास्तु ममपुण्य कथा श्रुतिः ।। प्राचार्य जिनसेम: महापुराण, पर्व-२, श्लोक-२५, प्रथम भाग, १९४४, प्रथम
संस्करण, भारतीय ज्ञानपीठ, फाशी ।। २. प्रथमानुयोगमधास्थानं चरितं पुराणमति पुण्यम् ।
बोधि समाधि निधानं बोधति बोधः समीचीनः ।। प्राचार्य समन्तभद्रः रत्नकरण्ड श्रावकाचार, द्वितीय परिच्छेद, श्लोक संख्या ४३ सरल जैन ग्रन्थ भंडार, जबलपुर।