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भाव पक्षीय विश्लेषण
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प्रध्ययन से पुण्यमय परिणाम होते हैं। प्रथमानुरोग के अध्ययन से एना गरीब ब्राह्मण को नैराग्य हो गया। प्रथमानुयोग के अध्ययन के पश्चात् अन्य अनुयोगों के प्रध्ययन से आत्मा का कल्याण हो जाता है । प्रथमानुयोग के अध्ययन से महापुरुषों के जीवन में से उत्थान पतन होता है। संसार की दशा क्या है इस बात को स्पष्ट करते हुए बुक या ई-सा रब नाते कच्चे धागे के समान हैं । सच्चा साथी एक मात्र धर्माचरण ही है 11
सामान्य श्रेणी में अच्युत्पन्न व्यक्ति अथवा मिथ्यावृष्टि के लिये प्रथमानुयोग का अभ्यास प्रारम्भ से अवश्यक है । प्रथमानुयोग की शब्दशः ब्युत्पत्ति गोम्मटसार जीवकांड में इस प्रकार प्राप्त होती है :
प्रथम अर्थात् मिध्यादृष्टि, अवती अथवा अञ्युत्पन्न विशेष ज्ञान रहित व्यक्ति . का प्राश्नय लेकर प्रवृत्त हुअा जो अनुयोग अर्थात् अधिकार है वह प्रथमानुयोग है। उसके अभ्यास से दुर्बल अन्त:करण को अपार बल एवं प्रेरणा प्राप्त होती है। राष्ट्र के जीवन-निर्माण में उसके सत्पुरुषों का इतिहास जिस प्रकार उत्साह को जगाता हुना नव चेतना प्रदान करता है, उसी प्रकार तीर्थकर, चक्रवर्ती, कामदेव, कादि महापुरुषों की जीवन गाथा में प्रभ्यास से शोध ही मन की मलिनता दूर होती है । हृदय का संताप दूर होता है । भावों में संक्लेष वृत्ति के स्थान में विशुद्ध परिपति का प्राविर्भाव होता है । उससे यह तत्व प्रकाश में आता है कि महान् पतित परिणाम तथा अवस्या बाला जीव किस प्रकार धर्म की मारण ग्रहण कर क्रमशः उन्नति करता हुआ Jष्ठ अवस्था को प्राप्त करता है। प्रथमानुयोग में प्राप्त एक दृष्टान्त इस प्रकार है :
सुभग नाम के ग्वाले ने भयंकर शीतऋतु में देखा कि एक मुनि रात्रि भर अंगल में ध्यान करते रहे । उनको यह तपस्या देखकर उसका मन कारंबार उनका स्मरण करता रहा । प्रातःकाल मूर्योदय के होने पर णमो अरहताणम्' सबन का उच्चारण कर वे मुनिराज चारण ऋद्धि के प्रताप से आकाश में गमन करते हुए अन्यत्र चले गये। उन मुनिराज के जीवन से गोपालक को बड़ी प्रेरणा मिली । उसने सदा 'गमो नरहंताणम्' शब्द का उच्चारण करना-मरण करना अपना कर्तव्य बना लिया । मृत्यु के पश्चात् बद्द सुदर्शन सेठ हुमा और रत्नत्रय की प्राराधना क फलस्वरूप वह मोक्ष पदवी का स्वामी बन गया । प्रश्रमानुयोग में भगवान महावीर के पूर्व भवों का वर्णन अत्यन्त रोचक ढंग से कथा के रूप में वरिणत है जो प्राणी मात्र को प्रेरणादायक है।
१. बुधनमः बुधजन विलास, पक्ष संख्या ४४, पृष्ठ संख्या २३, प्रका० जिनवाणी
प्रचारक कार्यालय, १६१।१ हरीसन रोड़, कलकत्ता ।