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________________ कृतियों का भाषा विषयक एवं साहित्यिक अध्ययन ६१ प्रतः उसके सहयोग सं अपने मिथ्यात्व आदि पापो का त्याग कर प्रात्मानुभव रूपी गुलाल से अपनी भोरी भर ले, यात्मा को निर्मल बना ले। सुमति का संग न रहने सेतू ने पहले प्रनेकानेक योनियों में भ्रमण किया और अनेक कष्ट उठाये। कवि बुधजन कहते हैं कि अपने देश को सुधारो प्रति सम्यग्दृष्टि बनकर बारित्र धारण करो, जिससे मुक्तिरमा के संग प्रानंद की प्राप्ति हो सके। इसी प्रकार की होली खेलने के लिये कवि ने चेतन राजा को प्रोत्साहिल किया है तथा अन्य प्रकार की होली खेलने का निषेध किया है । उन्हीं का एक और पद देष्टव्य है : 'सुमति रूप मारी श्री जिनवर के दरबार में होली खेलना चाहती है । इसके लिये वह निभाव-भावों का परित्याग कर शुशु स्वरूप बनाना चाहती है । बह प्रतिज्ञा करती है कि मैं कभी भी कुमति नारी का संग नहीं करना चाहती । मैं मिथ्यात्व रूप रंग की अपेक्षा सम्यक्त्व रूपी रंग में बना उचित समझती हूँ। कवि बुधजन भी अपनी आत्मा के प्रानन्द रूगी रस में (रंग) खूब छक गया है और अब उसे मानंद ही पानंद की प्राप्ति हो रही है । निरानन्द का कोई कारण ही नहीं रहा ।' कविवर बुधजन ने लोक भंगल' की कामना से प्रेरित होकर प्रकृति का चित्रण किया है यह कोई नई बात नहीं है । तुलसी, गिरधर प्रादि कवियों ने भी इस प्रकार लोक मंगल की कामना से प्रेरित होकर प्रकृति का चित्रण किया है। 'अनादि काल से प्रकृति मानव को सौंदर्य प्रदान करती आ रही है । वन, पर्वत, नदी, नाले, उषा, संध्या, रजनी, ऋतु प्रादि सदा से अन्वेषण के विषय रहे हैं। हिन्दी के जन कवियों को कविता करने की प्रेरणा जीवन की नवरता और अपूर्णता के अनुभव से ही प्राप्त हुई है । मुख्य बात यह है कि भारतीय साहित्य में प्रायः सभी कवियों ने किसी न बुधजन, बुधजन विलास, पाना संख्या ३१, पद्य सं० ३३, हस्त लिखित प्रति । वेतन खेलि सुमति संग होरी ॥ टेक ।। तोरी प्रानकी प्रीति सयानी भली बनी पा जोरी ॥१॥ खगर-डगर होले है यो ही, भाव पावनी पोरी। निज रस फगुमा क्यों नहीं बांटो, नातर सुधारी तोरी ॥२॥ क्षार कषाय त्याग या गहिले, समक्ति केसर थोरी।। मिथ्यापायर गरि धारिले, मिज गुलाल की ओरी ॥३॥ खोटे भेष घरे डोलत हैं, दुख पाय बुधि मोरी । "बुधजन" अपना भेष सुधारो, ज्यो विलसी सिव गौरी ॥४॥ २. डॉ. नेमिचन्द शास्त्री : संस्कृत काव्य के विकास में बैन कवियों का योगवान, पृष्ठ संख्या ५८५, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन ।
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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