SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व समकित केसर रंग बनायो, चारित पिचकारी छोरी ।। निज०॥ गावत प्रजपा मान मनोहर, अनहद झरसो बरस्योरी ॥ निज ।। देखन प्राय बुश्रजन भीगे, निरख्यो ख्याल अनखोरी । निज० ।। चेतन आत्मा अपने में ही होरी का खेल मचा रहा है। एक पोर उमंग में भरे चिदानंद जी हैं तो दूसरी पोर सुमति रूप गौरी है। इन दोनों ने लोक लाज का ख्याल न रखते हुए ज्ञान रूपी गुलाल से अपनी झोरी भर ली है । उसने सम्यक्त्व रूपी केयार का रंग बना लिया है और अब चिदानंद जी चारित्र रूपी पिचकारी छोड़ेंगे । इस प्रसंग पर मनोहर अजपा गान होने लगा और अनहद नाद होने लगा । इस प्रकार की होली को, बुधजन को भी देखने का अवसर मिला तो वे भी सुमति रानी के साथ होली खेलने लगे। इस प्रकार संपूर्ण वातावरण प्रानंद से भर गया। जैन म । जीवन, जीव को परम नियस की प्रोर बहाने का एक प्रयत्न है अत: यहां होली का मादक उन्माद भी समता-श्री वृद्धि का सहायक होता है । कवि की उपयुक्त भावधारा में मौलिक होली अध्यात्म प्रगति की होली बन गई है। प्रात्मा के घट में बसन्त फूट पड़ा है और फिर मुमुक्षुषों के लिये शाम्वत सुख केलि का कोई अन्त ही नहीं रहा है। १५नीं शताब्दी के श्री 'वर्षमान पुराणु" काव्य के प्रणेता श्री नवलराम ने अनेक होली पद लिखे हैं। यहां एक संक्षिप्त पद पर विचार किया जा रहा है। कवि का विमर्श है कि अश्लील भंड रूप से होली खेलना उचित नहीं है। उसके अनुसार महाठग कुमति-रमणियों का साथ एकदम छोड़, सुज्ञानरूप पसियों का प्रसंग करना इष्ट है । होली का खेल तो कुछ इस प्रकार ही होना चाहिये । यथा ऐसे खेलि होरी को खेल रे । कुमति गोरी को अब तजि करिके, साथ करो सुमती गोरी को ॥ कवि कह रहा है कि व्रत रूपी बन्दन लीजिये, तपती सात्विक भरगजा (सुरमित लेसन) लेकर संयम रूपी जल छिड़किये, फिर देखिये क्या बहार प्राती है ? ऐसा होली का खेल खेलिये । ___ कवि बुधजन अपनी 'बुधजन-विलास' रचना में चेतन राजा को सावधान करते हुए कहते हैं कि 'हे चेतन राजा ! यदि तुम्हें होली खेलना ही हो तो तुम सुमतिरानी के साथ ही होली खेलना । अन्य स्त्रियों की प्रीति तोड़कर सुमति रानी से संग जोड़ने से चेतन और सुमति की अच्छी जोड़ी बन गई है। यह डगर-डगर डोलती धी। परन्तु इस प्रकार डगर-उगर डोलना उचित नहीं है। हे चेतन ! अपना प्रात्मानुभव रूपी रंग क्यों नहीं छिड़कते ? तुम ने सुमति रानी का साथ किया है,
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy