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________________ कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एव कृतित्व फिया जिसके लिये जाति, पद, भाषा, देश मा धर्म की रेखाए बाधक नहीं थीं सब उनके उपदेश में लाभ उठाते थे । प्रत्येक धर्म की प्राचार और विचार ये दो शाखाए होती हैं । इन दोनों ही शासानों में जब तक रहता है, तभी तक धर्म की धारा अविच्छिन्न रूप से चलती है । प्राचार-चारित्र की दृढ़ता लाता है जिससे शिथिलाचार नहीं पा पाता और दर्शन की परिपक्वता (विचार पक्ष) उसे प्राबर नहीं बनने देती । कविवर बुधजन में इन दोनों पक्षों का अपनी रचनाओं में प्रतिपादन किया है । उन्होंने दोनों के सन्तुलन का पूरणं ध्यान रखा है 1 अहिंसा, सत्य, पचौर्य, ब्रह्मचर्य, परिग्रह परिमारण या अपरिग्रह इन पांच अणूयतों को धर्म का प्राचार पक्ष कहा है। कवि में भावानुभूति भी है और अभिव्यक्ति भी। धर्म में प्राचार का महत्व है(व्रत, उपवास, पूजन, तप आदि) परन्तु इस आचार में हमारी निष्ठा होना चाहिये। इस आचार का सम्बन्ध हृदय से होना चाहिये, प्रदर्शन के लिये नहीं। धर्म में वसम्य एवं प्रभासक्ति का विशेष महत्व है । अनासक्ति के प्रभाव में चित्त में निर्मलता नहीं भा सकती। चित्त की निर्मलता के बिना जीवन में सादगी, पवित्र-चिंतन एवं तप में तल्लीनता असंभव है। बुधजन की सैद्धान्तिक रचनामों में विषय-प्रधान वर्णन शैली है। कवि ने सभी सिद्धान्तों का समावेश सरल शैली में किया है। हिन्दी में इनके द्वारा लिखित ११ रचनाएं विषय-प्रधान शैली में लिखी गई है। "बुधजन सतराई" नीति परक रचना है। (३) प्रकृति-चित्रण : ___भारतीय साहित्य में प्रकृति-चित्रण की परंपरा प्राचीन काल से है। इसका कारण यह है कि भारतीय जीवन और संस्कृति मुख्यतः प्रकृति के प्रांगण में ही विकसित हुई है । अतः प्रकृति के प्रति भारतीय जनसा का प्रेम स्वाभाविक ही है । रामायण और महाभारत की रचना तपोवनवासी ऋषियों द्वारा हुई अतः उनकी रचनात्रों में प्रकृति के भनेक चित्र इष्टिगोचर होते हैं । अनेकों जैन कवियों में त्यागी बनकर बन का मार्ग ग्रहण किया वहां वे प्राश्रम में रहे। उन्होंने प्रकृति के खुले वातावरण में रहकर प्रकृति का अवलोकन किया था। वाल्मीकि रामायरण का एक चित्र देखिये राम पुष्पक विमान में सीता को ले जा रहे हैं । प्रकृति का रम्य रूप उनके सामने है अतः वे सीता जी से कहते हैं-हे सीते ! इस रमणीय तटवाली विचित्र मंदाकिनी को देखो । जिसके तट पर हस और सारस कल्लोल करते हैं और जो पुष्पित शुक्षों से घिरे हैं। पवन से प्रताड़ित शिखरों से जो नत्य सा करता है, ऐसा पर्वत वृक्षों से नदी पर चारों ओर पुष्प और पत्र विकीर्ण करता है । हे भद्रं ! पवन के झोकों से नदी के तट पर बिखरे हुए पुष्पों के ढेर को देखो और इन दूसरे पुष्पो, को देखो जो उड़कर जल में जा गिरे हैं । जैन मुनी प्रायः नदी, सरोवर के किनारे, पर्वतों के ऊपर या गुफानों में तप करते थे। प्रकृति प्रपना रोष दिखलाती
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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