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________________ कृतियों का भाषा विषयक एवं साहित्यिक अध्ययन है। इस दर्शन में प्रास्मा को पुरुष नाम से अभिहित किया गया है । सांख्य दर्शन में प्रकृति और पुरुष का निम्न लिखित लक्षण पाया जाता है। जो त्रिगुणमय, अविवेकी. विषय, सामान्य, अचेतन और प्रसवधर्मी है वह प्रकृति है और इससे विपरीत जो त्रिगुणातीत, विवेकी, विषमी, विशेष, चेतन तथा अप्रसवधर्मी है, वह पुरुष है। जीव स्ववेह प्रमाण है : वेदान्त दर्शन में आत्मा को व्यापक और एक माना गया है । उसकी मान्यता है कि मस्निल ब्रह्माण्ड में एक प्रारमा का ही प्रसार है । प्रात्मा के सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है । सांस्य, योग और मीमांसा दर्शन भी प्रात्मा को व्यापक मानते हैं। एक अन्य मान्यता प्रारमा को अपरिमाण स्वीकार करती है, परन्तु जैन दर्शन उसे स्वदेह प्रमाण माना है। लघु महत् मायापार र एक मात्म-द्रव्य के प्रदेशों में भी संकोच-विरतार होता है । इस प्रकार प्रत्येक दशा में वह शरीर प्रमाण ही रहता है। जीव भोक्ता है : जन दर्शन में जहां प्रत्येक द्रव्य को अपने-अपने गुग-पर्यायों का कर्ता माना गया है वहां भोवतृत्व योग्यता जीव में ही मानी गई है। जीव के सिवाय अन्य द्रव्य जड़ है, उनमें भोग करने की योग्यता नहीं है । जीव में यह भोक्तत्व योग्यता भी स्वद्रव्य के भोग पर ही प्राधारित है । वह किसी भी स्थिति में पर पदार्थों का भोग नहीं करता । जहाँ भी पर पदार्थों में जीव के भोक्तृत्व की कल्पना की जाती है, वह मिथ्यात्व-विलास के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है । जीव सिद्ध है : अन्य द्रव्यों की भांति जीव भी एक स्वतंत्र द्रश्य है। अनादि कालीन कर्म शरीर से बद्ध होने के कारण ही वह संसार दशा का भोग करता है, परन्तु ज्योंही कर्म-बन्धन से मुक्त होता है अपने शाश्वत सिद्धस्व को प्राप्त कर लेता है और सदा के लिये अपने इस विशुद्ध स्वभाव में रहता है 1 सिद्धत्व भी जीव का स्वभाव है। जीव कवं गति है: यह एक गंभीर प्रश्न है कि कर्म-बन्धन से मुक्त होते ही जब यह जीव अपने विशुद्ध स्वभाव को प्राप्त कर लेता है तब यह जाता कहाँ है ? समाधान यह है कि ज्यों ही यह जीव कर्म बन्धन से मुक्त होता है लोक के अन्त तक ऊपर चला जाता है । नीचे तिरछे इस लिये नहीं जाता है कि वह स्वभावत: ऊर्ध्वगामी है। ऊर्ध्वगमन त्रिगुरणभवेकि विषयः सामान्य भवेतनं प्रसषधम । व्यक्तं तथा प्रधान तविपरील स्तया पुमान् ॥ सांख्य कारिका, ११। २. 'तवनन्तरमूवं गच्छन्त्यासोकान्तात् । उभास्वामी तत्वार्थसूत्र, म. १०,
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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