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________________ ८४ कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्रारमा राग द्वेष एवं कर्ममल से प्राप्त है, वह पुरुषार्थ से शुद्ध हो सकती है । प्रत्येक प्रात्मा में परमात्मा बनने की क्षमता है । जैन दर्शन निवृत्ति प्रधान है। रत्नत्रम ही नित्ति मार्ग है । सात तत्त्वों की श्रद्धा ही राम्यग्दर्शन है। विचारों को अहिंसक बनाने के लिये अनेकान्त का प्राथय मावश्यक है ।' कवि की प्राध्यात्मिक रचनाओं का प्राधार ही प्रास्मा है । प्रतः आत्म-स्वरूप की यथार्थ जानकारी अत्मम्त आवश्यक है । प्रात्मा के सम्बन्ध में विभिन्न दार्शनिकों ने गहन-चिंतन किये हैं और अपनीअपनी स्वतंत्र मान्यताएं स्थिर की है, परन्त वे सब एकान्त दर्शन पर आधारित है और यही कारण है कि वे अनन्त गुणात्मक प्रात्म-स्वरूप का स्पर्श नहीं कर पाती । जन-दर्शन में प्रात्मस्वरूप का अनेकान्त इष्टि से किया गया सर्वां गपूर्ण विवेचन उपलध होता है। कहा भी है कि "जीव उपयोगमय है, प्रभूत्तं है, कर्ता है, स्वदेह प्रमाण है, भोक्ता है, संसारी है, सिद्ध है और स्वभाव से ऊर्ध्वगामी है" ।' जोय उपयोगमय है : जीब आत्मा का नामांतर है, उपयोग जीव का स्वरूप है। ज्ञान और दर्शन की उपयुक्त अवस्था को उपयोग कहते हैं। ज्ञान और दर्शन का अर्थ है-जानना मौर देखना । जीव को जानने की और देखने की क्रिया निरंतर बनी रहती है । एक क्षण के लिये भी उपयोगात्मक स्वभाव को नहीं छोड़ता है, इसलिये जीव उपयोग मय कहा जाता है। जीव प्रमूर्त है : जीव का दूसरा स्वरूप प्रमूर्त है । मूर्त का अर्थ है--जिसमें रूप, रस, प्रन्य और स्पर्श ये चार गुण प्राप्त होते हैं । इस भ्याख्या के अनुसार पुदगल द्रश्य ही मतिक ठहरता है । जीव मूर्तिक नहीं है, क्योंकि उसमें रूप, रस गंध और स्पर्श नहीं पाये जाते हैं। जीष कर्ता है : जैन दर्शन में जीव को कर्ता माना गया है । इसका अर्थ यह है कि जीव अपनी संसार और मुक्त दोनों दशानों का स्वयं कर्ता है । सांख्य दर्शन प्रास्मा को का स्वीकार नहीं करता । उसकी मान्यता में वह सर्वथा अविकारी-कूटस्थ नित्य एवं सर्वव्यापक है । निष्क्रिय है और सकता है । क्रियाशीलता केवल प्रकृति का धर्म १. जीयो उपयोगमयो भमुक्तिका सवेह परिमारणो। भोक्ता ससारस्मो सिद्धोसौ विस्ससोबढ़गई ।। अनाचार्य नेमिचान; अन्य साह गाथा नं० २, पृ० ४, जबलपुर प्रकाराम
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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