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________________ fr कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व 'बाबा में न काहु का, कोई नहीं मेरा रे । सुरनर नरक तिर्यग्गति मांही, मो को कर्मन घेरा रे ।।' बाबा मैं किसी का नहीं हूं और कोई मेरा नहीं है। शुद्ध आत्म स्वभाव ही मेरोनिवि है और उसकी संपूर्ण उपलब्धि ही मेरा लक्ष्य है । अन्य समस्त सांसारिक वस्तुओं का इस ग्रात्म-स्वभाव से कोई मेल नहीं है । संसार की इन चीजों में भी 'स्व' (आत्मा) की कल्पना करने से मुझे कर्मों ने नरक, तिर्थच मनुष्य और देव गतियों में बुरी तरह रुला दिया । श्रन्तष्टि खुलते हो "मैं" से सम्बन्धित समस्त वस्तुत्रों की सम्यक् प्रतीति होने लगती है और तब आत्मा बड़ी सरलता से अपने शुद्ध चैतन्य स्वरूप को पहिचान लेती है | देखिये : अन्त में किस प्रकार स्व-पर विवेक की ज्योति जागृत हो रही है— 'मात-पिता- सुल-तिय-कुल- परिजन मोह गरल उकेरा रे, तन-धन-वसन भवन-जड़ न्यारे हूँ चिन्मूरति न्यारा रे ॥ माता, पिता, पुत्र, स्त्री, कुल और नौकर-चाकर यह सब मोह जाल में फंसाने वाले हैं । इनमें राग और अपनत्व बुद्धि करके आज तक हम मोहपाश में फंसे रहे और दुखों को उठाते रहे । वास्तव में शरीर, वन, वस्त्र और मकान का आत्मा से कोई सम्बन्ध नहीं है । ये समस्त वस्तुएं जड़ हैं और ग्रात्मा से पृथक् हैं । ग्रात्मा का चैतन्य स्वभाव है और वह स्वयं इन सब चीजों से पृथक् अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व रखता है । विभाव भावों को छोड़कर किस प्रकार कविवर आत्म स्वरूप का साक्षात्कार कर रहे हैं - 'मुझ विभाव जड़ कर्म रचित हैं, कर्मन हमको छोरा रे । विभाव चक्र तजि घारि सुभाषा, अब आनन्द घन हेरा रे || शुद्ध म्रात्म-स्वभाव को छोड़कर अन्य समस्त भाव एवं कल्पनाएं वैभाविक है, जो स्वयं श्रात्म स्वरूप से पृथक् जड़ स्वरूप है और नवीन कर्म परंपरा की सृष्टि के कारण हैं और कर्म ही हमें संसार भ्रमण के द्वारा हलाते हैं। अब हमने वैभाविक भावों को छोड़ दिया है और शुद्ध भावों को अपना लिया है। इस समय हम केवल शुद्ध चिदानन्दमय श्रात्म-स्वरूप का साक्षात्कार कर रहे हैं । कविवर 'बुधजन' सच्चिदानन्द के पान में इतने तन्मय हो रहे हैं कि इसके सामने उन्हें अन्य समस्त जप-तप केवल उसी साध्य को प्राप्त करने वाले साधन भर ही दिखलाई दे रहे हैं । कविवर के शब्दों में सुनिये :
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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