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________________ कृतियों का भाषा विषयक एवं साहित्यिक अध्ययन ८ १ कविवर बुषजन सरलता के साथ श्राध्यात्मिक विषय का विवेचन करने में श्रत्यन्त निपुण हैं। उन्होंने सर्वत्र अल्पाक्षरों में भावगाम्भीमं को समाहित किया है, किन्तु चलती हुई भाषा में कहीं भी क्लिष्टत्तर का बोध नहीं होता । कहीं-कहीं तो उपमानों के प्रयोग से ही कवि ने काम चलाया है। यथा है श्रात्मन् । इस मनुष्य भव को प्राप्त करके भी विषय-सुख में मस्त हो जाने का अर्थ है हाथी पर सवारी करने के बाद रोना इसलिये श्रात्मन् 1 यदि तुम भवसागर से पार होना चाहते हो, संसार के दुःखों से छुटकारा चाहते हो तो तुम्हें समझदारी के साथ उन जिनेन्द्र भगवान के चरण कमलों की उपासना करनी चाहिये, जिन्होंने अपनी आत्मा को कर्मबन्धन से मुक्त कर लिया है। मनुष्य, मनुष्य का जन्म लेकर भी जब तक सदा के लिये दुःखों से छुटकारा पाने के मार्ग पर दृढ़ता एवं निष्ठा से अग्रसर नहीं होता, कविवर बुषजन की वाणी उसे पुकार पुकार कर सम्बुद्ध करती रहेगी । 'नरभवपायफेरि दुःख भरना, ऐसा काज न करना हो कविवर बुधजन का एक पद्य देखिये 'बाबा में न काहू का ' मोह का यह सबसे बड़ा मद है । संसार का मानव भादि काल से उसके मद में उन्मत्त है । इसके कारण उसे एक क्षण के लिये भी शुद्ध धात्म स्वरूप की झलक मिल पाती। यह सोच ही नहीं पाता कि शरीर के अन्दर रहने वाला 'मैं' क्या है और उसके साथी शरीर तथा अन्य बाह्य वैभव-सामग्री का इस "मैं और इससे पृथक् अन्य वस्तुओं का क्या सम्बन्ध है । इस बात का यथार्थं विवेक न होने के कारण मह इन सब चीजों में अपनस्थ मान बैठता है और 'मैं' के स्वरूप को भूलकर बाह्य वस्तुओं में ही 'में' के दर्शन करने लगता है। इसे ही पर्याय मूढ़ता ( पर वस्तु में अपने की मानना ) कहते हैं । मैं सुखी दुःखी मैं रंक राव, मेरे धन गृह गोधन प्रभाव | मेरे सुततिय में सबल दीन, वे रूप सुभग मूरख प्रवीन' ।। इत्यादि कल्पनाओं में मोह का प्रबल उक ही लक्षित होता है प्रोर इसी भाव के कारण समस्त वस्तुओं में इष्ट और अनिष्ट की कल्पना करके यह जीव चिरकाल से आकुल व्याकुल हो रहा है । कालविष ग्राने पर तथा पुरुषार्थं जागृत होने पर इसे आत्मभान होता है - मैं तथा इससे सम्बन्धित समस्त वस्तुओं की ठीक-ठीक जानकारी होती है । मोह मद-मंद हो जाता है | अंतरात्मा स्वपर विवेक की उज्जवल ज्योति से आलोकित हो उठती मोर गुन गुनाने लगती है । १. पं० दौलतराम, छहढाला, द्वितीय ढाल, पद्य संख्या ४ पृष्ठ संख्या ११. सरल जैन ग्रन्थ भंडार, जबलपुर प्रकाशन !
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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