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________________ संतोषजयतिलकु ७९ सतियं तासु को नंगरणा बषिर्य । दुजस्थे तेल भेइ पासंनियं ।। फोह प्रगोगाह पति से नरा । ताहं संतोसए सोम सीयकस ॥६५॥ एहु कोटबु संतोष राजा तो। जासु पसाइ वझति देती मरणो । तासु नैरिहि को दुद ना प्रावए । सो भहो सोमह खो जुग बाधए ।॥६६॥ बोहर खो जुग यावद लोम, कउए गुणहहिं जिसु पाहि । सो संतोषु मनि संगहह, कहिया तिरपणवाहि ।।६७:1 गाथा कहियहु तिहु वणपाहो, माणहु संतोषु एह परणामो । गोइम चिति दिद करु, जिउ जिसहि लोमु यह दुसद्ध ।।६।। सुरिण वीरवयप गोइमि, प्राषिउ संतोषु सूरु घट माझे । पम्पलिज लोहु संखि खिणि, में पउरंगु सममू पप्पणु ।।६६॥ लोभ द्वारा आक्रमण चित्ति चमकिउ हियइ परहरिउ । रोसाइणु तमकियउ, लेइ लहरि विषु मनिहि धोलई । रोमावलि उसिम कालरू इहुइ मुबह तोलछ । दावानल जिउ पजलिड जयण नि लाडिय बाडि । प्राजु बलोषह खिउ करत अउ मूसह उप्पाहि ॥७॥ दोहा लोभहि कीयउ सोचणउ हवस भारति ध्यानु । आई मिया सिरु नाद करि झूठ सवलु परधानु ।।१।। षट्पदु सोम की सेना प्रायउ भू पधान मंतु तत खिरिण कोयउ । मनु कोहू अरु दोहु मोहु इक युद्धउ थीयउ ।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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