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संतोषजयतिलकु
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सतियं तासु को नंगरणा बषिर्य ।
दुजस्थे तेल भेइ पासंनियं ।। फोह प्रगोगाह पति से नरा ।
ताहं संतोसए सोम सीयकस ॥६५॥ एहु कोटबु संतोष राजा तो।
जासु पसाइ वझति देती मरणो । तासु नैरिहि को दुद ना प्रावए । सो भहो सोमह खो जुग बाधए ।॥६६॥
बोहर खो जुग यावद लोम, कउए गुणहहिं जिसु पाहि । सो संतोषु मनि संगहह, कहिया तिरपणवाहि ।।६७:1
गाथा कहियहु तिहु वणपाहो, माणहु संतोषु एह परणामो । गोइम चिति दिद करु, जिउ जिसहि लोमु यह दुसद्ध ।।६।। सुरिण वीरवयप गोइमि, प्राषिउ संतोषु सूरु घट माझे । पम्पलिज लोहु संखि खिणि, में पउरंगु सममू पप्पणु ।।६६॥
लोभ द्वारा आक्रमण
चित्ति चमकिउ हियइ परहरिउ । रोसाइणु तमकियउ, लेइ लहरि विषु मनिहि धोलई । रोमावलि उसिम कालरू इहुइ मुबह तोलछ । दावानल जिउ पजलिड जयण नि लाडिय बाडि । प्राजु बलोषह खिउ करत अउ मूसह उप्पाहि ॥७॥
दोहा लोभहि कीयउ सोचणउ हवस भारति ध्यानु । आई मिया सिरु नाद करि झूठ सवलु परधानु ।।१।।
षट्पदु सोम की सेना
प्रायउ भू पधान मंतु तत खिरिण कोयउ । मनु कोहू अरु दोहु मोहु इक युद्धउ थीयउ ।।