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________________ ८ कविवर बूधराज सेह न किसही दोसु कि गुगा सम्वह गहइ । पडह न आरति जीउ सदा बेसनु रइइ ।।५८२ जाहन वक्त परणाम होहि तिसु सरल गति । हप्पजिउ निम्मलन, लाहि मलण चिति । सोस जिब जिन्ह पर कित्ति सदा सीयलु रहा । धवल जिव धरि कंधु गरुव भारह सहइ ॥५६| सुरधीर बरवीर जिन्हहिं संतोषु बलु । पुडयरिंग पति सरीरि न लिप दोष जनु ।। इसउ मह संतोषु गुरिणहि वतिय जिवा । सो लोभइ खिउ करइ कहिउ सरवलिा इदा ॥६॥ कहिन सरवनि इसउ संतोषु । सो किज्जइ चिसि दिहु जिसु पसाइ सभि सुख उपजहि । नह प्रारति जीउ पडइ, रोर थोर दुख लख भज्जहि ।। जिसु ते कल वहिम चडइ, होइ सकल जगि प्रीय । जिन्ह कटि यहु प्रयट्टी पिय पुन प्रिकिति ते जीय ६१।। मडिल्ल पुत्र प्रिकिति जिप सणिहि सुणियहि । जै जै जै लोहि महिं मरिणयहि । गोइम सिउ परवीण पर्यपिउ । इसउ संतोषु मुक्पति जंपिङ । ६२॥ संचाइणु छंदु पियं एक संतोषु भूवपति जासु । - नारीय समाधि अत्यइ मिति ॥ के ससा सुदरी चित्ति हे आवर । जीउ तप्तखिणे वंच्छियं पावए ॥६३|| संतोष का परिवार-- संवरो पुत्त, सौ फ्यटु जाशिए । जासु पोलंबि संसार तारिजए । छदि सौ भासरं दरि ने बारए । मुक्ति मम्मिले हेल संचारए ।।६४॥
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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