SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संतोषजतिलकु रासा छर इसज सूरु संतोषु मिनिहि घट महि कियन । सकयस्थ उ लिन पुरिसह, संसारिहि जियउ ।। संतोषिहि मे तिपते ते चिरु नंदियहि । देवह मिउ ते माणुस महियलि वंदियहि ॥५१॥ जगमहि तिन्ह की लीह जि संतोषिहि रंम्मिय । पाप पटल अंधारसि अंतर गति दम्मिय ।। राग दोष मन' मम्झि न खिणु इकु माणियइ । सत्त, मिस चित्त'तरि समरि जाणियह ॥५२॥ जिन्हें संतोष सखाई तिन्ह नित घडह कला । नाव कालि सतोष करइ बीयह कुसला ।। दिनकरु यह संतोष विगासह हिद कमला। सुरतरु यह संतोषु कि वंचित देइ फला ।।५३५॥ चिंतामणि संतोषु कि चित चितत्तु पुरह । कामधेनु संतोषु कि तब कज्जह सरद ।। पारसु यह संतोषु कि परसिहि दुक्खु मिटइ । यह कुठार संतोषु कि पापह जड कट इ ।।५।। रयणायरु संतोषु कि रतनह रासि निधि 1 जिसु पसाह संडहि मनोरथ सफल विधि । जे संसोषि समारणे तिन्ह भउ सामु गयउ । यूमरेह जिउ सिन्ह मनु नितु निश्चल भयउ ।।५।। जिन्हहि राउ संतोषु सुतुटुन भाउ धरि । पर रवणी पर दवि न छोपचि तेह हरि ।। कूडु कपटु परपंचु सु चित्ति न लेखिहहि । तिणु कंचरणु मरिण लुदसि समकरि देखि हहि ॥५६।३ पियउ अमिय संतोषु तिन्हहि मित महा सुख्खु | लहिउ प्रमरपद ठाणु गया परभमण दुखु ।। राहंस जिउ नीर खीर गुग्ण उद्धरइ । धम्म प्रधम्म परिख तेव होय करई ।।५।। प्राव सुहमति ध्यानु सुबुद्धि हीये भज्जइ । कलाहि कलेसु फुध्यानु कुषि हिय तजइ ॥
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy