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________________ ७६ कविवर बुचराज विकट बुद्धि विनि सहि मुसिय धाले कम्मह फंध । लोभ लहरि जिन्ह कह पडिय, वीसहि ते नर अंध ।१४५।। वोहा मरणव तिबह नर सुरह, हीडावं गति चारि । वीरु भणइ गोइम निसुरिण, लोमु बुरा संसारि ॥४६|| गौतम स्वामी का प्रश्न कहिउ स्वामी लोभु बलिवंडु ।। सब पुछिउ गोइमिहिं इसु, समत्त गय जिउ गुजारहि । इसु तनिइ तउ बलु, को समथु कहुइ सु विदारइ ।। कवण बुद्धि मनि सोचियह कोजर फकरण उपाउ । किसु पौरिषि यहु जीतियइ सरवनि कहहु सभाइ ।।४।। भगवान महावीर का उत्तर सुणहु गोइम कहइ जिणणाहु । यह सासणु विम्मलइ, सुणत धम्मु भय बंध तुहि । अति सूचिम भेद सुणि, मनि संदेह खिण माहि मिट्टहि ।। काल प्रतिहि ज्ञान यहि, कहियउ आदि अनादि । लोभु दुसहु इव जित्तयइ, संतोषह परसादि ॥४८॥ कहहु उपजाइ कह संतोषु । कह वासइ थानि उहु. किस सहाइ बलु इसउ मंडइ । क्या पौरिषु सनु तिसु, कासु बुद्धि लोभह विहंडइ ।। जोरु सखाई भविमहुइ पपडावै यहु मोखु । गोइम पुछइ जिण कहहु किसज सुमदु संतोषु ॥४६) संतोष के गुण साहजि उप्पजह चिति संतोष ॥ सो निमसद सत्तपुरि, जिण सहाय बलु कर इतउ । गुण पौरिषु सनु धम्म, ज्ञान बुद्धि लोभह जितइ ॥ होति सखाई भत्रियहुइ टालइ दुरगति दोषु । सुरिण गोहम सरवनि कहर, इस सूरु संतोषु ॥५०॥
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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