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कविवर बुचराज
विकट बुद्धि विनि सहि मुसिय धाले कम्मह फंध । लोभ लहरि जिन्ह कह पडिय, वीसहि ते नर अंध ।१४५।।
वोहा मरणव तिबह नर सुरह, हीडावं गति चारि । वीरु भणइ गोइम निसुरिण, लोमु बुरा संसारि ॥४६||
गौतम स्वामी का प्रश्न
कहिउ स्वामी लोभु बलिवंडु ।। सब पुछिउ गोइमिहिं इसु, समत्त गय जिउ गुजारहि । इसु तनिइ तउ बलु, को समथु कहुइ सु विदारइ ।। कवण बुद्धि मनि सोचियह कोजर फकरण उपाउ ।
किसु पौरिषि यहु जीतियइ सरवनि कहहु सभाइ ।।४।। भगवान महावीर का उत्तर
सुणहु गोइम कहइ जिणणाहु । यह सासणु विम्मलइ, सुणत धम्मु भय बंध तुहि । अति सूचिम भेद सुणि, मनि संदेह खिण माहि मिट्टहि ।। काल प्रतिहि ज्ञान यहि, कहियउ आदि अनादि । लोभु दुसहु इव जित्तयइ, संतोषह परसादि ॥४८॥ कहहु उपजाइ कह संतोषु । कह वासइ थानि उहु. किस सहाइ बलु इसउ मंडइ । क्या पौरिषु सनु तिसु, कासु बुद्धि लोभह विहंडइ ।। जोरु सखाई भविमहुइ पपडावै यहु मोखु ।
गोइम पुछइ जिण कहहु किसज सुमदु संतोषु ॥४६) संतोष के गुण
साहजि उप्पजह चिति संतोष ॥ सो निमसद सत्तपुरि, जिण सहाय बलु कर इतउ । गुण पौरिषु सनु धम्म, ज्ञान बुद्धि लोभह जितइ ॥ होति सखाई भत्रियहुइ टालइ दुरगति दोषु । सुरिण गोहम सरवनि कहर, इस सूरु संतोषु ॥५०॥