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________________ संतोषकु दोहा सप्प उरल जैसे गरल उपने विष संजुत्त । तैसे जाग्रह लोभके, राग दोष दुइ पुत ||३६|| पद्धडो छंद द्रुद्द राग दोष तिसु लोभ पुत्त । जाहि जह मिस त जह सत्त तहा प्रगट संस्रारि धुत्त ॥ लोभ का प्रभाव तह राग रंगु । क्षेषह प्रसंगु ॥४०॥ जय राधु तहा सरलज सहाउ 1 जहू दोषु तहरं किछु चक्र भाउ || जह रागु तह मनह प्रवाणि । जह दोष तहा अपमानु जारि ||४१ || जह रामु तह तह गुणहि युति । जह दोषु तहा तह छिद्र चित्ति ।। जह रागु वहा वह पतिपति । जह दोष तहा लह काल दिट्ठ || ४२ || ए दोनउ रहिय वियापि लोह | इन्ह भाकुन दीसइ महिय कोइ || नित हियद सिसलहि राग दोष | वट बाडे दारण मग्गह मोख ॥२४३॥ रड पुत्त में सिय लोभ धरि दोष | चलु मंडित प्रप्पणउ नाद कालि जिन्ह दुक्ख दीयत । इंद जालू दिखाइ करि, वसी भूत सङ्घ लोग फीवर ॥ जोगी जंगम जतिय मुनि सभि रक्खे लिलाइ । अटल न टाले जे टहि फिरि फिरि सम्बहिश्रा ॥४४॥ लो राजउ रहिउ ज व्यापि । चउरासी लखमहि जय जीउ पुरि तत्व सोइय । जे देख सोचि करि तासु वा नह प्रतिम कोय ।। ७६
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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