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कविवर बूचराज
गाथा देखंत मान थंभो, गलियउ तिसु मानु मलह मझम्मे । हूवउ सरल पणामो पुछ मोहम् चिति संदेहो ॥१०॥
बोहा गौसम द्वारा प्रधान
गोइमु पुछा जोडिकर स्वामी कहा विचारि । नोमि वियाफे जीव सहि तरिहि फेउ संसारि ॥१॥
भगवान महावीर का उत्सर
लोभ लग्गउ पारणवषु कर, अलि जंपइ लोमिरतु, ले प्रदत्त जब लोभि प्रावइ । यह लोमु बंमह हरद, लोभि पसरि परम वधावह ।। पंचइ परतह खिउ करइ, देह सदा भनचारु । सुरिए गोइम इसु लोभ का कहउ प्रगट विथारु ॥१२॥ मूलह दुमस सण सनेहु, सतु विसनह मूलु व कम्मह मूल प्रासउ भणिजह । जिव इंदिय मूलु मनु, नरय मूलु हिस्या काहज्जइ । जगू विस्वासे कपट. मति परजिय वचछ दोह ॥ सुरिण गोइम परमारथु यहु, पापह मूलु सुलोहु ।।१३।।
गाथा
श्रमयउ भनादि काले, चहु गति मझम्मि भोवु बहु जोनी। वसि करि न तेनि सक्कियउ, यह वारण लोभ प्रचहु ।।१४।।
वोहडा दारणु लोभ प्रचंडु यहु, फिरि फिरि वह दुख दीप । ध्यापि रमा वलि अप्पइ, लख चउरासी जीय ।।१५।।
पद्धती छंद पहु ग्यापि रह्या सहि जीय जंत, करि विकट बुद्धि परमय हरत । करि छलु पयस धूरत जेव, परपंचु करिवि जगु मुसइ एव ।।१६।।