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________________ संतोषजयतिलकु इन्द्र का वृद्ध के वेव में गौतम गधर के पास अश्नाजब सुदेखइ इंदु घरि ध्यानु नहु वाणी होद जिए, तब सुक्र पटु मन महि उपाय 1 हुई बंभर होकर मच्चलोइ सुरपति भायउ 1 गोतमु नोतमु जह से प्रवरु सरोत बोरु | सत्य पहुल भाइ करि मघवें गुरिहि गौ ॥४॥ fuवरु बोलइ सुरराहु हो विष्प, तुम्ह दीसइ विमलमति, इकु सन्देहु हम मनहि थक्क | नहु ले साके मिलइ जासु तयह गांधि चुषक | वीरुहूता मुज्झ गुरु मोनि रह्यालो सोइ । हज सलोकु लीए फिरउ प्रत्थु न कइ कोइ ||५|| गाया हो कह विषर वंभरण को धछे तुम्ह चित्ति संदेहो । खि माहि सयल फेडद, हज श्रविरुल्लु बुद्धि पंडित ।।६।। षट्पदु तीन काल षटु दयि नवसुपद जीव षटुनकहि । रसल्हेस्था पंचास्तिकाइ व्रत समिति सिगनकहि ॥ ज्ञान अवरि पारिस भेदु यहु सुलु सु मुत्तिहि । तिष- महर्ष कहि वचनु पहु अरिहि न रुत्तिहि ॥ यह मूल भेदु निजु जाणिव सुद्ध भार जे के गहहि । समक्कत्तदिद्धि मतिमान से सिव पद सुख मंदित सहहि ||७|| गाथा } एवर सर्वाणि संभलि कमति चित सम्झि पुरइ न बत्यो । उत्ति गोमु चल्लिउ पुरिण तत्थ जय जिगाडु ||६|| रड तव सु गोह चल्लिउ गजंतु, जणू सिधु मत्तमय तरक छंद व्याकरण प्रस्य । बटु श्रंगह वेयत्रुनि, जोत्तिक्कलंकार सत्यह । सुलइ सु विषा मतुल वलु चडिङ तेजि यति वंभु । मानु गल्या सिसु मन तणा देखत मानयंभू HEH ७१ ต
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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