SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संतोषजयतिलकु राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों में संतोषजयतिलकु' की एक मात्र पाण्डुलिपि उपलब्ध हो सकी है। पाण्डुलिपि श्री दि० जैन मन्दिर नागदी, बुन्दी के गुटके में कविवर बेघराज के अन्य पाठों के साथ संग्रहीत है जो पत्र संख्या १७ से ३० तक उपलब्ध है । तिलकु में १२३ पद्य हैं । उसके लिपिका पांडे देवदासु थे जिनका उल्लेख 'चेतन पुद्गल धमाल' के अन्त में दिया हुआ है। पाण्डुलिपि शुद्ध, स्वच्छ एवं सुन्दर है। साटिक मंगलाचरण जा पज्ञान प्रचार फेडि करणं, संन्यानदी वंद्यये । जा दुख बहु कमा एण हरणं, पाइकसुम्ग सुहं । जा देवं मणुणा तियंग रमणी, मक्किल तारणी । सा जज जिगवीर क्यण सरियं वाणी प्रते निम्मस ।।१।। विमल उज्जल सुर सुरसणेहि, सु भषियरण गह गहहि, मनमु सरिजण कवल खिल्लाहि । कल केवल पहियहि, पाप पटल मिष्यात पिल्लहि । कोटि दिवाकर तेउ तपि निधि गुण रतम करंडु । सो वधमानु प्रसनु नितु तारण तरणु तरंडु ॥२॥ तरण तारण हरण दुग्णयह, करुणाकर जीय सहि, भविय चिन वह विधि उल्लासण । प्रठ कम्मह खिल करण शुद्द धम्मु दह दिसि पयासरण । पावापुरि श्री वीर जिरण, जय सुपगुत्तर आइ । तव देविहि मिलि संठयउ समोसरण वह भाइ ।।३।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy