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मयाजूझ
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थूल पाण मम बहह, थूल कूडयो मम भासह । थूल अदत्तमलेहु, देखि परतिय तन तासहु । परिगह दिगह पमारण. मोग उपभोग संखवेहु । अनथदंड प्रमाण, नित्य सामाइक सेघल्छु । पसंरतु सुमनु घसमहि दमहु, पोसह एकादसि घरहु । पाहार सुद्ध चित्त निम्मलइ, असंविभाग साधहु करहु ।।१४७।।
मांडल्ल पहिली प्रतिमा दंराण धारहु, वीजी प्रप्त निम्मल उपचारहु । तीजी तिहु कालहि सामाइक, चौथी पोसह सिब सुन दायक ।।१४।। पंचमी सकल सचित्त विबज्जइ, गईभोयण मट्टीयन किज्जा । सप्तमी वंम वरत दिछु पालहु, अट्ठमी पापणु पारंमु टालह ॥१४६।। नवमी परगहु परइ मिलीजाद, सावध वचनु दसमी दीजइ । एकादसमी पडिमा कहि परि, रिषि जाउ ले भिक्षा पर घर फिरि ।।१५।।
दोहा इच जे पालहि भावस्यु इहु उत्तिम जिया घम्मु । . जग महि हवउ तिन्ह तराउ, नर सकयत्वउ जम्मु ।। १५१।।
जंपि सक्कर करहु तउ तिसउ वलु मंडिवि देहस्यज, अहव क्रिपि जे नर सक्कहु । ता सहह ध्यानु निजु, हीयइ घरत खिरणु इक न थाकहु । अंते करहु सले खरगा, सन्वे जीव खमाइ । पालहु सावय सुख लह्ह माण जिणेसुर राइ ॥१५२।। सुबह सायह पम्मु हित करण, सो पालह पलख मशिा, सुग्गइ होइ दुग्गइ निवारइ । बुद्धत संसार महि, होइ तरंड खिरण महि तारइ । वंधियद कम्म जि सुह असुह, जीय प्रनंतर कालि । ते तप वलि सव निद्दलहुँ, जिव तर कु'द कुदालि ।।१५३।।
षट् पद छोडि इक्कु प्रारंभु राप दोषह विहु तबहु । तीनि सल्ल परिहरउ, चारि कषाय विवज्जह ।