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________________ ६६ कविवर बुचराज यिति प्रथासिय लोउ प्रलोउ, पुणु भासिय प्रथि जो, नत्यि हुति ते नरिथ भासिय । पुष्णिकारणि बहुविष पाहिजे, जी जिसीको सांसो तिहि मेलि दल सा सा गति भोगेइ ।। १४१ ।। महारंभ पांरंभ करि परिग्गहु मिल पंच इंद्रिय वसि करहि मद मासि चितु लाबहि । इसे सुख के फल पाप न पुन विचारहि । सो नरु नर गेहि जा६ मशुच जम्मतंरु हारइ ॥ १४२॥ चहु माया केवलहि कपटु करि पर मनु रंजइ । प्रति कुडिहि श्रवगूढ़ करिनि छल परजीवह वंच | मुहि मीठा मनि मलिन पंच महि भला कहावइ । इन कम्पनि जारिंप जूनि तियजचह पावइ ।। १४३ ।। भद्द प्रवृत्ति जे होंहि ध्यान आरति न चहुँ । अनुकंपा चिति करहि विनख रति मुखा भाषइ । पंचदह दह सरल प्रणामि, मनि न आणहि मछर गति । कहहि खरवन्ति पावहि सुगति राग संजम दहु पालहि ।। १४४ ।। सावय धम्म जे लीग दिस समूह निहाल । विष्णु रुचि जे निजरहि वालयण तबु साधहि । इनु भाइ जितुराई काउ देवह एति बाषद्धि ।। १४५ ।। रड छंद मण सबै चित्त परि भाउ, निक समकित सदह, देउ इक प्ररहंत से बहु । आरंभ पारंभ बिनु, सुगुरु जाणि निग्रन्थ सेवहु । मासिउ धम्मु जु केवलिय, सो निश्च जागोज । तिन्ह बरत संजम नेमि तिन्ह, जिन्ह पहिला बिरु एहु ।।१४६ १ चूल पारण मम भखहू धूल कूडज मम भासहु । लु प्रकत्त मलेह देखि परतिय वितु तासहु । परिगहु विउ पमागू, भोगउपभोग संखेव 1 अनर्थवं विविमा, नमउहू सामाइकु सेबहु १४७।। प्रति
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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