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मयजुझ हक्कारिउ सुभट चारितु अनि त ' सानु मंदाति । गह गहउ जैन चित्त, इव चल्लिज रिसह जिणगाहि ।।६।। घल्लिउ रिसह जिणंदु स्वामी, विहिसिया मनु कवल । तिसु पंथि सनमुष माझ्या, नाथि यामै मतु धवलु । मृदंग तूरा संघ भेरी झल्लरी झंकार । दाहिण सुदरि सबद मंगन, मीय करहिं उचारु ।।७।। ले हत्यि पूरा फलसु सक्षिमी, मोलिय सममुष भाइ । पावक दीपगु जोति समसरि देषिया जिण राइ । सव रच्छ सुरही प्रति अनुपम, काढ तासु गुवालु । पय संतु पवलिहि दिट्ठ. नरवह, करगहे करवालु ।।६।। निनटंतु वांवह वोलिया घडि सुफल बिरहि चाइ । इकु' निवलु जुगलु पलोइया सावडू अडिया प्राइ । गरजत सुरिणया केसी सिरि धस्या अवरु उठाई ।।६।। दुइ दिट्ट गयवर अति सउजल करत गल गरजार । प्रावंत फल नारिंग निहाले अबर कुसमहिं हारु । सब सवण सुपन संजोग उसिमालबधि पोतइ जाम । जे नीति मारग पुरष चालहि तिनहि सीझइ काम ।।१०।।
हुइय उत्तिम सत्रेण जाम गढ पालि उत्तरिउ, सुमति पंच सा बाण छाइयं । मनुसूरह गह गहिस, जाम नीसारण परगढ़ बजाय । दोनउ स्क्यि सबल दल, जुडिय सुभट मुख मोडि । रण दिहि जे नर खिसहि, तिनकी जननी खोडि ।।१०।।
पद्धडीय छन्द तिन्ह जननि खोडि जे भजि जाहि, पच्चारिप नर पौरिष कराहि । र अंगणु देखहि सूरबीर, पे रुणिय जेव नचाहि गहीर ।।१०२॥ पाइयउ पहि ल भन्यान घोरि, उट्टि न्यान पछाडिल करिवि जोरु । मिथ्यातु उठित तय प्रति करालु, जिनि जीउ सलाउ प्रनत कालु ॥१३॥ घल्लिज कुमग्गहि लोड तासु, तिनि मुसिज न कोको को विस्वासु । अन्नादि काल जो नरह सस्लु, उहु मिशइ सुभटुए कल्लु मल्लु ।।१०४।।