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________________ ५८ अदितर बनान अपसकुन होना मुडिय सिरु नर न कटउ हथि कपालु जिसु । संमुहुई छौंक पयाण करत तिसु । तिण तुस चम्म कपास कद्दम्म गुड लवणा। मोह चलतं तिस नगर हू दीठे ए सवणा ।।१०॥ प्रथम मजलि चलंत सुफोही फौकरई । नाइक बाझहु मालउ बत्तीसी अणुसरह । दांवह काला विसहरु मसिहू फणु हणई । सुक्क बिरषतहि जुगिणि रोलइ दाहिणए ।।१।। सवणन सुपिनउ मानइ, चरिङ गविनते । कज्ज बिणासण अवसरि पुरुषह डिगय मते । धर्मपुरी के दर्शन होना मजलि मजलि करि चलिउ, धम्मपुरी दिसहि । पागम ध्यातम सार जणाक्ष्य वेचरहि ||१२|| दोहा मागम प्यातम बिपिचर तिन्ह जणायउ । आइ तुम्ह उपरि पल्याण्यो, स्वामी मनमथु राइ ।।१३।। गाथा सुरिणय बात मणरमु उपायज । मरवत्तरण न की बुलायउ । सार देह बिवेक बुलाबहु । समा जोडि सुहु मंतु उप्पाबहु ।।१४|| वित्त विवेक को सेना-- सम दम संबरु हुकु टुकु बैरागु सवसु दलु । बोहि तत्त परमत्यु सहण संतोष गरूबभर । पिमा सु अजउ मिलिज मिलि उ मद्दउ मुस्तितउ । संजमु सुत्त', सउथ्षु प्रायउ किंचरण बंभवउ । बलु मंद्धि मिलिय करुणा अटलु सासण बिरण बधाइय। . ले फोम सबलु संवूहि करि इव विवेक भडु पाइयउ ।।५।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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