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मयराजुज्झ
याइयइ सू ता बाताइ सद, मदि मासि जिहु तिय जीव तुद्ध । तह घाट विषम कुभी गहीर, तिसु माहि पचावहि ले सरीरु ।।८।। सिरु तल करहि उपरि सि पाउ, व घालहि सबल निसंक पाउ । भाले करि पीडहि घाण माहि, रड बड़हि रडहि बहु दुखु सहाइ ॥१॥ वै छेयए भैयण ताणहप्ताप, वसहहि जीय जिनि कीय पाप । जिनि पन्यामानी मोह राह, तितु सुर मजहि तेह जाइ ॥८२।। तह स्वामि उत्तारिउ मयण कीय, मइ प्राई सारथयह तुम्ह दीय , धम्म पुरु गहु प्रति विषम ठाणु, तिस उपरि चलिउ करि बिताण ।।३।। इव मा जुहिय इह विषम संघि, उहू संक न मानइ जीति कधि । उह पप्पु अप्पु अप्पर भरणाइ, उह अवरि कोरि नडि गिणा ।।८।। आदी सुरस्यउ मिल्लि र बिबेक, उहु वैसि कियउ दूहु मंतु एक । अप्पणउ दाउ सहको गणति, को जाणइ पासा कि लंसि ।।८।।
दोहा इती बाय सूणेबि करि, पित्ति उप्पणउ कोह । सधनु सवै संहिं करि, इथ भड्डु घल्लिउ मोहु ।।६।।
मोह का साय होमा -
मोहु चल्लिा साथि फलिकालु, तहहूतउ मदन भछु, तह सुजाइ कुमंतु कियउ । गळु विषमउ धम्मपुरु, तहसु सघनु संवृहि लिया । दोनउ' चल्ले पैज करि, गब्बु धरिउ मन माहि । पबण प्रबल जब उछलहि, घण घट कम रहाहि ॥७॥
गाथा रहहि सुकिउ घण घट्ट', जुडिया जह सबल गजि षटु । सखिडि चले मुमट पाणउ' कियज भष्ट मोहं ।।८।।
रासाछबु फरिवि पयाण' मोह भर चल्लियउ । संमुह झंषाज बालबघूला झुल्लियउ । फुट्टिउ जलहरु कुम ध्याह तरुणि दिन ।
ले आइ तह प्रग्गि घूषंतिय रतिय ॥८६।। - -- २, धर्मपरो