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मयणजुझ
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शारिणमंतु पिय गयज विबेकु, अम्मपुरि गढ चडिज सर्बनि सनमानु दीयस । परताप गरजियो, सूरजिव उद्योतु कियो । जीवंसज वरी गमउ, देषुजि फरिही सौजु । सां तू मदनु न मोह भडु द्रुहू गंबाब छ बोजु ।।६।। .
दोहा इंढोलिप तीन्यो। भुवरण बलु लिद्धउ सुहडाई । सोमइ कहूँ न दिपिउ सो मुझ पर बांह ॥६५।। बड़ह बढेरी पिरपबी, घर महि पश्यहि कासु । दन जर दौगि म र शिपि मादीसु ।।६६।१ जब तिनि नारि विलोहियाउ, तब तमकिड तिसु जीउ । जणु पजलती अग्गि महि, लेकरि पालिउ घीउ ।।६।।
कक्ति करमदेव का धर्मपुरी की ओर प्रस्थान
रोम रोम उद्धसिया, भिकुटि चडिय निल्लाडिय । गुरणाउ जिउ सिंधु घालि चललिय अंगडाइये ॥ विसहर जि फुकरई, लहरि ले कोयह चडिय उ । जिव पावस घण मत्त तिवसु गजदि गा अडियउ । नहू सहिय तमतिसु तिय किय, मछ तुछ जति बरणु रालिउ । श्री धम्मपुरी पट्टण दिसहि, तपसु दुट्ट मनमथु चलिउ ॥६॥
गाथा चल्लियउ रयहणाहो, सुदरि धरि धयण हित मझमि । कलि कालि सामु सुणिय', उद्यउ मोह भडु जाइ ।।६।। अट्ठि उठ्यो मोहू राउ दिटिउ नर सूरु बीरु परचंडो । तू कवण कत्थ बासहि, कहू प्रायो कवरण कम्जेण 41७०॥
१. सिणिक प्रति, तिरण प्रप्रति