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________________ कविवर बूचराज कामदेव का स्वर्वेश मागमन फिरिउ मनमथु जित्ति सब देसु, नद भट जै जै करिह, पिसाच गंधब्ध मावहि । बहु खिल्लिय दुटू मणि, कुजसु पडहु गत महि बजावहि । माया करह बधावण, मोह रहसि वित्त । सब्बे इंया पुषिणया, जिग परिः कामg ::५।। दोहडा मार पिसा पगि लागि करि, तब मनमथु धरि जाइ । रहसिउ अंगिन मावई, जीते राणा राइ ॥१८॥ गाथा ए जित्ति चित्ति खिलज, आयउ प्रानंद घरह जन बारि । उटु, उद्र, बंद बयरिण, भारतउ बेगि उत्तारउ ||१६ मुटु रहिय मोड मानणि, पुच्छद तब मयस्सु कवण कज्जेण । को सूरु वीर अटलो कहि सुदार मुज्झ सरि भुवणे ।।६।। रति एवं कामदेव के मध्य प्रश्नोत्तर कंत जित्तर कवरण से देसु, को पट्टापु वह एयरू, कवणु सबलु भूपत्ति डिमायउ । किसु छत्त, विहंडियन, करिनि बंदि कहु कासु ल्यायो । किसु मलिया परतापु, ते कह कह फेरी प्राण । रति जंप हो मदन भड कल्नु पौरिष अप्पारणु । ६१॥ जिरिण संफर इंदु हरि बंभु, वासिग्गु फ्यालि जिसु, इंदु चंदु गह मरण तारायण । विद्याधर वक्षसु गंधञ्च सहि देव मण इ॥ जोगी जंगम काफ्डी सन्यासी रस छवि । ले ले सपु जरए महि दुडिय ते मह पलि बंदि ॥६२।। दोहा सुरिण करि पौरिष मुझ तणा, घाल्यो मण भरमाई । संमुह अरिणय न जुज्झयज, गयड विवेकु पलाइ ।।६।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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