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मयएजूझ
देखंतु दरसरणु जिन्ह केरा रूप पहिला नासए । तिन्ह साथि परसु करत खिरामहि तेज तनहु पणासए । मोहण करंतह पाउ छीजइ काहस किमि सुख्खु पाइयं । गायन्ति गीय बजन्ति वीरगा, तणि पाइक पाइयं ।।४२।। जे दब्बु देखत चित्त रंजहि सील सत्त. गवावहि । जे चहुय गति महि अनत जम लगु बहुतु दुख सहावहि । चिति अवरु चिताहि प्रवर जपद्दि अवरु जुगपति प्राइमं । मायन्ति गीय बजन्ति वीणा तरुणि पाइक पाइयं ।।४।।
तसरा
पाली मिथ्यासीय गय गुडिय विसन सत्त हय तेउ सज्जिय । सुनाहु कुसील तिणि पापु कुस निसान बज्जिय । छत्त, रियउ परमादु सिरि चमर कषाम ढलति । इव रतिपति संवह करि चडिउ गहीर गाजति ।।४।।
रंगिका कामवेव का आक्रमण
चडिउ गहीर गाजत चोरि मानइ न संक उरि । सुभटु आफ्रए जोरि अतुस बले तिणि कुसम कोवंडलीय । भमर पण चकीय देखत तरुणि लिय कि कि न छले । सज्जि प्राणिय कुत कृपारा साधिमे पाचउ बाण । फेरिये जगत आप बेडिवि रणे, माझ्या प्राइया रे मदन राइ ।। दुसहु लगउ घाइ चलिय सूर पलाइ गहवि तणो ||४५।। चिणि मिलिई संकर माणु, छोडियउ अंतर स्यानु । गौरी संग हित प्राणु इव नहिग, जिन तपढ़ बिच टालि । पालिउ माया जालि गहन रूपि निहालि रुंद पडियं । हरि लियो मदन कसि सोलह सहस बसि रहिउ गुअरि रसि रयगा दियो । माझ्या माझ्या रे मदन राइ दुसह लगो धाइ
चलिय सूर पलाइ गहि विसरतो ।।४६।।
१. क प्रति में यह पच तीन पंक्तियों का है । २. गति में इसका नाम यस्तु बंध क्यिा है । ३. मत्पाउ-ग प्रति ।