SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविवर बूचराज दोहा मवन का बीमा लेफर प्रस्थान मोह राउ तब हाथि करि, बीउउ अप्पच प्रषु । कुमति कुबुद्धि कुसीष देइ, चलामिउ कंदप्पु ॥३५।। गाथा गडिय मयण मय मत्त गज्जित, सजिउ दल विषभु वह पयरेण । हरि बंभु ईसु भज्जिज, जब वज्जिउ गहिर नीसारण ॥३६।। गोतिका छंद बसन्त का आगमन बज्जिउ निसानु बसन्तु भायउ, छल्ल कुदसु खिल्लियं । सुगंध मलयापवरण झुल्लिय, अंब कोइल बुल्लियं । रुण झुणिय केवइ कलिय महुवर, सुतर पत्तिहिं छाइयं । गावन्ति गीय बजंति वीणा, तरुणि पाइक आइयं ॥३७।। जिन्ह कडिल केस कलाय तिल, मंग मोतिय पारियं । जिन्ह विणा भुबंग बलंति चंनि गुथि कूसम सवारियं । जिन्ह भवहं घुणहर धरिय संमुछ नयण बारण चाइयं । गावन्ति गीय वजन्ति वीणा तरुणि पाश्क माइयं ॥३८॥ जिन्ह तिलक निगमय तिक्ख भल्लिय चीर धज फरकंतियं । जिन्हु कनक कुडल कंध मनमथ मूढ़ पंडिव झलियं । जिन्न दस विज्जु चमकंत लग्गहि कुको कोनद वाइटो । गायन्ति गीत बजन्ति वीणा तरुणि पाइक आइयं ॥३६॥ जिन्ह मिहरिण गिरिवर रोम वरण घण, नखसि प्रसिदर करटुए । इतु मगि चलंतह समरि तसकर कहर नर कित्तिय हए । जति घणरज खिद्द नूपुर काछ कुसम बगाइयं । गावन्ति गीय बजन्ति वीरला तरुसि पाइक प्राइयं ॥४०॥ जिन्ह रागि कटि वंधिय पटवर जिरह उर कंचूक से। हाकति हसति कुकति कुरसति मूढ पट लहरी वसे । जे कुटिल बुधिहि हरहि परचितु चरत घेउन जाणीयं । गायन्ति गीय बजन्ति वीणा तरुणि पाहक माइंयं ॥४शा
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy