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________________ कविवर बूचराज मडिल्ल मगरी मांहि कपटु, संचरयत ठाम ठाम सो देखात फिरयउ । देखि विवेक सभा सुविचक्षण, देखि प्रजा वय सुभ लक्षण ॥१६॥ देस्या न्याउ नीति मारग बहु, देच्या तह हर लोगु सुख सहु । भेद छेदु सबहिं तिहां पायो, तब सुकपटु उठि पंयिहि पायो ।।२०।। पट का वापिस अधर्मपुरी में पाना प्राइ अधम्मपुरी सुपहुक्तउ, जाइ जुहार मोहसिंह कित्तउ । मोह जुलार जान सम पुरुधार, कान विवेकु कवण हइ मच्छह ।।२१।। दोहा पासि बुलायो कपटु तब, पूछण सागा बात । कहां विवेक नियप्ति कह', कह तिन्ह की कुसलात ॥२२॥ कपट का उत्सर मोह सुणह तुम्हि कानु धरि, कपटु पयासह एउ । जैसी देखी नमण मइ, तसी बात कहेउ ।।२३॥ वस्तु बन्ध धर्मपुरी का वर्णन बसा पट्टणु पुनपुरु नयर । तही राजा सत बिरु, तिनि विवेकु गठि सुथिइ यपिउ । परणाई धीय तिनि, राजु देसु सबइ समप्पिर । दया धम्मू तहो पालीयइ, कीजइ पर उपगारु । तह उइ गुपनन वीसई, चोर अन्याई आए ॥२४।। दोहा पवण छतीस्यु सुखस्य सहि, करन को परतीति । काचे कंचनं गलिय महि, पर रहहि दिनु राति ।।२५।। सेरे गढ महि फोडि घर, चोर चरड से जाहि । पर तिण कोइण छीपई, उसकी भाशा मांहि ।२६।। सहां परपंषु न दीसई, जह छे विसियन कोइ । सभ संतोषी मेदनी पीठी मद अबलोइ ॥२७॥ १. दे क प्रति २. ग प्रति में २५-२६ पद्य को केवल २८ वा पद्य ही माना है।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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