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________________ ४६. कविवर बूचराज दोहा चेतन एवं उसका परिवार पुरुब करम गहि बघिउ, सहइ सु-दुख संताउ । सु काया गढ भिसरई, बसे सचेतन राउIF राउ चेतन काउ गढ मज्मि, नहु जारणइ सारं किमु, मनु मंत्री सपर बल बखाणउ । परवत्ति नियति दुइ तासु तीय, ए प्रगट जाप । जाणउ नित्ति विवेक सुत, परवत्तिहि भयो मोह । सो मल्लि बैठा रजू ले, करइ कपटु सनेह नित दोहु ।।७।। मडिल्ल मोह परहि माया पटरानी, करइ न संक अधिक सबलारिणय । करि परपंतु जगतु फुसलाषा, लहि निर्वक्ति किव प्रावर पावर || दोहा चलिय नित्ति विवेकु ले, दी8 इसिय प्राचार । मोह राज तब गरजियउ, दल बस सयम विथार Net गाथा गह कनकपुरीय नामो, राजा तह सस. करह थिर रज्जो । तह ले पुत्त पत्तिया, बहु प्रादह पाइयो सेण ।।१०।। दीनी कम्पा सस तिसु. सुमति सरस सुविसाल । अप्पि रग्जि विवेकु थिरु , पालि मला गुणमाल ॥११॥ १. कर कपटु नित दोहक प्रति) २. इसे एक प्रति) चेतन की स्त्री निवृत्ति अपने विषक सुत को लेकर कनकपुरी में पहुँच जाती है। ४. पुण्यापूरी (ग प्रति) ५. तहां लोकत पछुत (म प्रति) ६. पाइउ (ख प्रति)
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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