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________________ मयरगजुज्झ मंगलाचरण-सारिफ जो सम्वविमाणहुति चविउ तहणारा चितसरे । उवन्नो मरुदेवि कूखि रयणो, स्यांग कुले मंहगो । भुक्तं मोब सिरज्ज देस बिमलं, पाली पवज्जा पुणो। संपत्तो बिधारिए देउ रिसहो, काऊण तुव मंगल ॥१॥ जिण परह वागवारिण, परराषउ सुहमति देहि अय जगणी । चण्णसु मगरण जुज्झ, किव जित्तिउ श्रीय रिसहस ॥२।। रिसह जिणवा पढम सिस्थयरु, जिराधम्मह उवरमा, जुयलु धम्मु सब्बै मिवारण । नाभिराइ कुलि कवलु, सरवनु संसारह तारण । जो सुर ईदहि बंदियउ, सदा चलण सिरुधारि । किउं कि रतिपति जित्तिउ, ते गुण कहउ विद्यारि ॥३॥ सुरणहू भवियरण एह परमत्थु, सजि पिता परकथा, इकु च्यानु हर कंन्नु दिपइ । मनुपिल्ला कब लाग्य', हुइ समानियउ प्रमी उपजह । परच जिम्इ पित. एहु रसु, पासइ कसमल खोइ । पुनरपि तिन्ह संसार महि जम्मा मरण न होइ ।।४।। सुणहि नहीं जूवइ जे रत्त, जे इत्तिय कामरस, बहु उपाय बंषद जि रसीय । पर निवा पर करण जिके, तिबरि उनमावि मत्तिय । परिय जि घोर समुद्द महि, नहु आवहि सुभ ध्यान । नौमा रसु बहु प्रमीय रस, इतहि न सुणही काम ||५|| १. जुवल (क प्रति
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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