SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविवर ठक्कुरसी सब हृस्तु परंतु सत हारे, जिद्दि मंडी पंच पसारे । जिहि इंद्री पंच पसारया, तिहि मुनिष जनम जगि हार्यो । निल पंच व इक्क भंगे, लिर और और ही रंगे चक्षु चाहे रूप जु दीठो, रसना मख मखे सु मीठो । निति न्हाले घास तुमंगो, रूपाक्ष कमल निति श्रवण गीत रस हेरें, मन पापी पंचे प्रेरे । मन में करें कलेशो, इंद्रियान दीजें दोसो | कवि बेल्ह सुतनु गुरधाम, जगि प्रगट ठकुरसी नामु | करि वेल सरस गुण गाया, चित चतुर मनुष समुझाया । मन मूरित संक उपाइ तिहि तराइ चिति न सुहाई । नहि जंपो घणो पसारो, इह एक वचन छ सारो । संवत पंद्रहसरे विध्यासे, तेरसि सुदि कार्तिम मासे । मिहि मनु ईद्री दसि कीया, तिहि हरल परत जग जीया ॥ ६ ॥ ॥ इति पचेन्द्रिय वेति समाप्त ॥ २७१
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy