________________
२७२
after बुचराज एवं उनके समकालीन कवि
चिन्तामरिण जयमाल
⋅
परविधि जिए पासड पूरण प्रासह दूरयि संसार मलु । चिन्तामणि जंतहु मरिंग सुमरन्तः समहुजेम संजय फलु ॥१॥ महारत गुंजा समादुष्णत्त सुखे सदुत्त कालु संकरण चित । हरो होइसो काणे जंबुमस े भरतासु चितामणे जंतु वित्तं ॥ २७ दिवं मूसलाया रदंतं पयडं मऊरिण करतो किए उच्च सु न लोस सिन्धुरो लगत्त, भरता चिंतामणे जंतुवि ॥३॥ विसे वासि मणि षोपतो, न भोय फूली कियो मंद गंजो ण लोम्याद चुन्यो फणी सम्पत्ति भरतासु चितामणे जंतु चित्त ॥४॥ समीरे सहाए मिली घूम झालं गदापेखि मंगं फुलिंग विसानं । roads या अग्गिए सीर सिक्तं भरतासु पितामरणे जंतु चित्तं ॥ ग तीसार वित्त भमंगेद्दारीयं, नथलं बलं मण्डलं सष्ण्विायं ।
दुई जरा दुदु खास पित भरतासु विताम जंतु चित्तं ॥६॥
I
कुदेवा गहा डायणी भूमिपाल, कुसवर कुसन न लग्ग तिणित्तं मरी संकले देह रक्खो बिनाणे, गिक हरि तो नियंता येतं समुद्देर वह प्रवाहे अगम्मे, तह होइसो जाइगो पाइ जितं बरो वीढया बेड सूत्री दुहाला, लग्नंति घायं रथे दिष्णु सत्तं
+
दिनाह विसं कम्म बभ्ध बालं | भरतासु चितामसे जंतु विसं ॥७॥ णरासीसु वितं दिट्ठकुट्टा | भरतासु चिंतामणे जंतु वित्त | पड़यों को तिखो किए पुञ्च कम्मे । भरतासु चिंतामणे जंतु चित्तं ॥६॥ गलै घल्लिक सप्पु होइ फुल्ल माला । भरतासु चितामो जंतु चित्त ॥१०॥ सोही कुण्डबी गुणी हूँति भिन्ता ।
भरंतासु चितामणे जंतु वित्तं ॥ ११ ॥ ।
तिया रूप सीलम्यश्रा पुरा भत्ता, पुणो हुति मेहे श्रमाणं सुविस
J
इय वर जयमाला मुरगह विसासा बेल्ह सतनु ठाकुर कहए ।
जो साख सिणि सिक्ख दिए रिशि अक्सर सो सुहृमण विउ लहए ।। १२१४
॥ इति चिंतामणि जयमाल समाप्ता ॥