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________________ २६८ बोहा छंब दोहा कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि पञ्चेन्द्रिय वेलि स्पर्शन इन्द्रिय वन तरुवर फल खातु फिरि, पय पीवतो सुछंद । परसरण इन्द्री प्रेरियों, बहु दुख सहे गयंद ॥ बहु दुख सही गयंदो, ससु होइ गई मति मंदो । कागज के कुंजर काजे, पडि खाउन सक्यो न भाजे । तहि सहिय धरणी तिस सुखो, कवि कौन कहत स दुखो । रखवाला वलगड़ जाण्यो, बेसा सिराय परि थाप्यो । बंध्यो पनि संकलि घाले, तिउ कियउन सक्छ थाले । परसणु और दुख पायो, निति अंकुस घावों घायौ । परसरण रस कीचकु पूर्वी, गछि भीम सिला तल चूर्यो । परक्षण रस रावण नाम, मारियउ लंकेसुर रामं । परसण रस संकर राज्यो, तिय भागे इहि परसा रस जे थूता, ते सुर रसना इन्द्रिय नट ज्यो नाच्यो । नर घणा विगूता ||१|| किलि करतो जनम जलि, गाल्यौ लोभ दिखालि । मीन मुनिष संसारि सरि, काढ्यो घीवर । कालि || १ भौंवरि सो काढ्यौ धोवरि काले, तिणि गाल्यो लोभ दिखाले । मछु नीर गद्दीर पहठी, दिठि जाइ नही जहि दीठो । इह रसणा रस कउ घाल्यो, यलि भाइ भुवं दुख साल्यौ । इह रखना रस तर भुसे माप गुरु भाई । तां
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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