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________________ २६२ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि ___ कविवर ठक्कुरसी १६ वीं शताब्दि के द्वाड प्रदेश के प्रमुख कवि थे । उनकी रचनाओं के प्रध्ययन से ज्ञात होगा कि कवि ने या तो भक्ति परक रचनायें लिखी हैं या फिर समाज में से बुराइयों को मिटाने के लिए काय लिखे है । कवि का कृपण छन्द उन लोगों पर करारी सोट है जो केवल सम्पत्ति का संचय करना ही जानते हैं। उसका उपयोग करना अथवा त्याग करना नहीं जानते । कृपण छन्द जैसी रचना सारे हिन्दी साहित्य में बहुत कम मिलती हैं । इसी सरह पञ्चेन्द्रिय वेलि एवं 'सप्त व्यसन षट्पद' भी शिक्षाप्रद रचनायें हैं जिनको पढ़ने के पश्चात् कोई भी पाठक आत्म चिन्तन करने की ओर बढ़ता है। कुरसी का समय मुसलिम शासकों की धर्मान्धता का समय था लेकिन कवि ने समाज का अपनी रचनात्रों के माध्यम से जिस प्रकार पथ प्रदर्शन किया वह सर्वधा प्रशंसनीय है। ठक्करसी की रचनायें भाव, भाषा एवं शैली तीनों ही दृष्टियों से उत्तम रचनायें हैं उन्हें हिन्दी साहित्य के इतिहास में उचित स्थान मिलना चाहिये ।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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