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________________ कविवर ठक्कुरसी २६१ जहि पीये पाठ पनर्थ कर, जननी महिला न विचार पुरै । तहि मञ्च पिये भगगु रुवणु सुखो, जहि जादम बसह दिएणु दुखो ॥३॥ १३. पार्श्वनाथ जयमाला यह जयमाला भी स्तवन के रूप में है। चम्पावती में पार्श्वनाथ स्वामी का मन्दिर था और उसमें जो पाश्वनाथ की प्रतिमा है उसी के स्स बन में प्रस्तुत जयमाल। लिखी गयी है। अयमाला में ग्यारह पद्य है। अन्तिम पद्य में कवि ने अपना और अपने पिता का नामोल्लेख किया है। जयमाला का अन्तिम पद्य निम्न प्रकार है इह वर बइमाला, पास जिए गुरण विसाला । पहहि जिगर एरी, तिणि संझा विचारी। कहा करि अनंदी, ठकुरसा घरह लन्दो । लहहिति सुख सारं, वंछियं बह पयारं ॥ १४. ऋषभदेव स्तवन यह मी लघु स्तवन है जिसमें प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की स्तुति की गयी है। स्तवन में केवल दो अन्तरे हैं । दूसरा अन्तरा निम्न प्रकार है इश्वाक वंस श्री रिसह जिणु, नाभि ता भम भव हरण । सब पहल प्रवर कहि ठकुरसी, तुह समथ तारण तरण ।। १५. कवित्त कविवर ठक्कुरमी ने सभी प्रकार के काव्य लिने हैं और वे सभी विषयों से प्रोतप्रोत हैं। प्रस्तुत कवित्त भी विविध विषय परक है और सम्भवतः कवि के मन्तिम जीवन की रचना है । कवित्त का अन्तिम पद्य निम्न प्रकार है जइरु वहिरह सुण्यो नहु गीतु, जई न दौट ससि अंधलइ । जइ न तरणि रसु संदि जाण्यो, जइ न भवर चंपइ रम्यो । जइ न घणक कर हीणि ताण्यौं, अइ किरिण नि गुणिनि लेखणी । कब्दि म कीयो मण्ण, कहि ठाकुर तउ गुणी गुण नांउ जासी सुरणु ॥६॥ इस प्रकार अभी तक ठक्कूरसी की १५ कृतियों की खोज की जा सकी है लेकिन नागौर, अजमेर, एवं अन्य स्थानों के गुटफों की विस्तृत छानबीन एवं खोज होने पर कवि को और भी रचनाओं की उपलब्धि की सम्भावना है । ठक्कुरसी प्रकृति प्रदत्त प्रतिमा सम्पन्न कवि थे इसलिए सम्भव है कोई महाकाव्य भी हाथ लग जावे।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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