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________________ परसा रस संकट इति परख रस जे कविवर ठक्कुरसी राज्यो, तिथ आगे नट यो नाच्यों । थूता, वे नर सुर घणा विता | १|| दूसरी इन्द्रिय रसना है। मानव सुस्वादु बन जाता है पौर प्रपना हिताहित मुला बैठता है। अपनी मृत्यु का कारण वह स्वयं बन जाता है। जल में स्वच्छन्द विचरने वाली मछली भी रसनेन्द्रिय के कारण ही जाल में फंस कर अपने प्राण गंवा बैठती है केलि करंतो जनम जलि, गाल्यो लोभ दिखालि ! मीन मुनिष संसारि सरि, कादयों वीवर कालि । सरे काय बोरि काले, तिरिए गाल्यो लोभ दिखाले । मनौर गहीर पट्टी, दिठि जाइ नहीं जहि दीठो । २४५ कवि ने मानव रूपी मछली के रूपक द्वारा रसनेन्द्रिय के दुष्प्रभाव की विशद व्याख्या की है। उसके शब्दों में जन्म को जल, मनुष्य को मछली, संसार को सरिता और काल को घीवर के रूप में देखने में कितनी बचाता है। इसके पश्चात् कवि ने रसनेन्द्रिय के प्रभाव की जो सत्य तस्वीर प्रस्तुत की है वह कितनी सुन्दर है इह रसा रस कट वाल्यो यति आइ मुवं दुखसाल्यो । वह रसना रस के ताई, नर मु बाप गुरु भाई । घर फोडे पार्डे बाटां, निति करे कपट घरण घाट | मुख झूठ सांप सहिहि बोल, घरि छोष्ट दिसावर डोले । कवि के कथन में अनुभूति है और जीवन की जागती तस्वीर | रात दिन सुनते देखते, पढते हैं "इह रसना रस के ताई, नर मुलं बाप गुरु भाई ।" इस रसना इन्द्रिय के चक्कर में पड़कर इस मानव को झूठ कपट करना पड़ता है। अपने लहलहाते घर को उजाड़ना पड़ता है। झूठ का सहारा लेना पडता है तथा घरबार को छोड़ देश देशान्तर भटकना पड़ता है। मर्यादों को वह समाप्त कर देता है। के शब्दों में कितनी सच्ची अनुभूति है । है कि यदि मानव जीवन को सफल बनाना है तो प्राप्त करना श्रावश्यक है 1 यही नहीं छोटा-बड़ा, ऊँच-नीच, सब की यह सब रसना इन्द्रिय का चक्कर है । कवि अम्य में कवि ने यही प्रभिलाषा प्रकट की फिर रसना इन्द्रिय पर विजय रसना रस विग्री प्रकारौ वसि होइ न श्रीगण गारी । जिहि हर विषै वसि कीयो, तिहि मुनिष जमन फल लीयो ।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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