SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४४ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि ठक्फूरसी ने देलि के अन्त में अपने प्रोर अपने पिता के नाम का भी उल्लेख किया है तथा अपने आपको 'गुणबाम' विशेषण से सम्बोधित किया है । जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कदि ठक्कुरसी की कीति उस समय आकाश को छ रही थी। विषय प्रतिपादन कवि ने एक-एक इन्द्रिय का स्वरूप उदाहरण देकर समझाया है। सबसे पहले यह स्पर्शन इन्द्रिय के लिए कहता है कि वन में स्वतन्त्र रहते हुए वृक्षों के पत्ते एवं फल खाते हुए स्पर्शन इन्द्रिय के वश में होकर ही हाथी जैसा जीव' मनुष्य के वा में हो जाता है और फिर अंकुशों को मार खाता रहता है। कामातुर होकर ' हाथी कागज की हथिनी के पीछे सब कुछ भूल जाता है। वन तरुवर फल खान, फिरि पय पीवतो सुछंद । परसण इंद्री प्रेरियो, जहु दुख सहै गयन्द । बहु दुख सहो गयंदो, तसु होइ गई मति मदो । कागज के कुजर काजे, पढि खाइन सक्यो न भाजे । कीचड़ में फंसने के पश्चात् मदोन्मत हाथी की जो दशा होती है उस पर कवि मानों आंसू बहाते हुए कहता है तहि सहीय षणी तिस भूखो, कवि कौन कहत स दुखो । रखवाला वलगड़ जाण्यो, वेसासि राय घरि प्राण्यो । वंध्यो पगि संकुलि घाले, तिज कियउन सकइ बाले । परसण प्रेरे दुख पायो, निति भकुस वायां पायो । कवि ने स्पर्शन इन्द्रिय के वशीभूत होने के कारण जिन-जिन महापुरुषों ने अपने जीवन को नष्ट कर दिया है उनके भी कुछ उदाहरण देकर इस इन्द्री की भयंकरता को समझाया है। मथुन के यशीभूत होने पर ही कीचक्र को जीवन से हाथ धोना पड़ा । रावण की सारी प्रतिष्ठा एवं रावणत्व पूल धूसरित हो गया । इसलिए जिस प्राणी ने स्पर्णन इन्द्रीय पर विजय प्राप्त की है उसी ने जीवन का असली फल चखा है। परसण रस कीचक पूरची, जहि भीम सिला तलि चूरयो । परसण रस रावण नाम, मारियड लंकेसुर राम । १. कवि धेरूह सुतनु गुणयामु, जगि प्रगट ठकुरसी नामु ।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy