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________________ कविवर बूच राज एवं उनके समकालीन कवि हिन्दी के पन्य कपि । उना इदि का कार्य केवल हरि भजन माना है। सूरदास ने 'सोई रसना सो हरि गुण गान' लिख कर रसना इन्द्रिय के प्रमुख कर्तव्य की ओर संकेत किया है । कबीर ने प्रपनी पीडा यों व्यक्त की है --जी भाष्टिया छाला परचा राम पुकारि पुकारि। तीसरी इन्द्रिय है ब्राण ! इस वारण इन्द्रिय के वश में होकर भी प्राणी कभी-कभी अपने प्राण गबां बैठता है। प्राण इन्द्रिय की शक्ति बड़ी प्रबल है। बिउटी को शक्कर का ज्ञान हो जाता है तथा भौरे कमल को खोज निकालते है हम स्वयं भी अच्छी गन्ध मिलने पर प्रसन्न चित्त होकर आनन्द का अनुभव करने लगते हैं तथा दूषित गंध मिलने पर नाक पर रुमाल लगा लेते हैं, नाक भों सिकोड़ने लगते हैं तथा वहां से भागने का प्रयास करते हैं। कवि ने भ्रमर का बहुत सुन्दर उदाहरण दिया है। जिस तरह गघ लोलुपी भ्रमर कमल पराग का रस पान करता रहता है और वह कलि में से निकलना भी भूल जाता है। बन्द कमल में भी वह रंगीन स्वप्न लेने लगता है-"रात भर खूब रस पीऊगा, और प्रात:काल होते ही स्वच्छ सरोवर में कमल की कलियां विकसित होंगी मैं उसमें से निकल जाऊंगा।" एक अोर वह श्रमर सुनहरे स्वप्न ले रहा है तो दूसरी पोर एक हाथी जल पीने सरोवर में प्राता है और जल पीकर उस कमल को उखाड़ लेता है और पूरे कमल को ही ला जाता है। वारा भौंरा अपने प्राणों से हाथ धो बैठता है। कमल पछी समर दिनि, घ्राण गंधि रस रूढ । रैणि पडी सो संकुभयो, नीसरि सक्या न मूद ।। मति घाण गधि रस रूठो, सो नीसर सक्यो न मुलौं । मनि चित रयरिग समायो, रस लेपयी भजि प्रघायो । जब उगलो रवि विमलो, सरवर विकसै लो कमलो । नीसरि स्यौं तब इह छोडे, रस लेख्यौं आइ बहुडे 1 चितवत ही गज भायो, दिनकर उगदा न पायौ । बलि पसि सरवर पायो, नीस रस कमस युद्धि लीयो । गहि सुदि पाव तलि चल्यो, अलि मारौ यर हर कंप्यो । इहु गध विष छ भारी, मनि देखहु क्यो न विचारि । इड् गंध विर्ष वसि हवी, अलि अलु अखटी मुबो । अलि मरण करण दिठि दीजे, तउ गध लोम नहि कीजे ॥३॥ मन्न में कवि ने मानव को भ्रमर की मृत्यु से मिक्षा लेने को कहा है कि जो प्राणी इस संसार की गन्ध लेने में ही अपने मापको उसमें समर्पित कर देता है
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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