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________________ कविवर ठक्कुरसी २३६ ही चम्पावती के शासक थे। महाराज रामचन्द्र के शासन काल में लिखी हुई पचासों पाण्डुलिपियों राजस्थान के विभिन्न जैन ग्रन्यागारों में संग्रहीत है। ठक्कुरसी सम्पन्न थे । पंडित माल्हा प्रजमेरा कवि के समय में विशेष प्रसिद्धि प्राप्त श्रेष्ठी थे। कवि में और माल्हा अथवा मल्लिदास में विशेष मंत्री थी और कितनी ही रचनाओं को लिखने में मल्लिदास का विशेष माग्रह रहा था। लेकिन इमी चम्पावती में कुछ ऐसे श्रावग भी थे जो प्रत्यधिक कृपण थे और किञ्चित् भी पंसा धर्म कार्य में खर्च नहीं करते थे । कवि को इसीलिए 'कृपण छन्द' लिखना पड़ा जिसमें एक कृपण की एवं उसके कृपण मित्र की कहानी दी हुई है। सरकालीन समाज-कवि के समय के समाज को हम सम्पत्ति-शाली एवं ऐश्वर्य वाला समाज कह सकते हैं । कविवर ठक्कुरसी ने 'पार्वनाथ शकुन ससावीसी' में ढूढाइड प्रदेश एवं विशेषतः चम्पावती नगरी का जो वर्णन लिखा है उसके अनुसार चम्पावती व्यापार का केन्द्र थी तथा उसमें कोई भी व्यक्ति दुःखी नहीं दिखाई देता था । जैन समाज तो सम्पन्न समाज था। वहां समय-समय पर महोत्सव होते रहते थे। उस नगर में रहने वाले सभी भाग्यशाली होते थे ऐसी लोगों की धारणा थी । कृपण अन्य में भी एक स्थान पर वर्णन पाया है कि जब श्रावग गरण यात्रा से लौटते थे तो वापिस पाने की खुशी में बड़े लम्बे-लम्बे भोज होते थे । लोगों का खान-पान रहन-सहन अच्छा था । पान खाने की लोगों में कचि थी। लेकिन सम्पन्न समाज होने पर भी लोग पसनों में फसे रहते थे। यही कारण है कि कवि को सप्त व्यसन पर दो कृतियां लिखनी पड़ी थी। साधु गण---चम्पावती उस समय भद्रारकों का केन्द्र था और वहीं उनकी गादी था। प्रभाचन्द्र उस समय वहां भट्टारक थे। कवि ने उन्हें मुनि लिखा है पोर जब वे प्रवचन करते थे तो ऐसा लगता था कि मानों स्वयं गौतम गयाघर ही प्रवचन कर रहे हों। इन्हीं के शिष्य थे मुनि धर्मचन्द्र जो बाद में मडलाचार्य कहलाने लगे थे। कवि ठक्कुरसी ने धर्मचन्द मुनि के उपदेश से 'व्यसन प्रबन्ध' की लघु कृति की रचना की थी। १. जहा न को जगु कसा दुखिउ. जैन महोछा महमघण।। जहि विनि दिनि दोसन्ति, तहा वसहि जे घणु पर इजरण विवस कहंति । २ ससु मज्झि पहास सि वर मुरणीसु, सह संठित णं गोयमु मुखी । मेघमाला कहा ३. मुणि धर्मचन्न उपवेसु लह्यो, कवि ठकुरि विस्न प्रबंध कह्यौ । व्यसन प्रबन्ध
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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