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________________ यशोधर चौपई कुसुमवान मानिति मन चूरू, भासं सुयण सरोरुह सूरु | तो कह पुरण जोगु सुर जारि, समिकत रयणु लेह दिनु घरि ।।५१५|| स्वयं देवी द्वारा अहिंसा धर्म पालन करना - परिहरि कुगति सुगति सुरि गई ।। ५१६३ भए बहुत नर समिकल घार | जीव घात को छह भाव, जे पूजहि तिन वरजि रहाउ । तजहि श्रापनी पहिली चालि, जिनवर तनी धम्मं प्रतिपालि ॥५१६।। जीव घातु तय देवी छाडि, प्रापतु फिरी नगर महू टाडि | जो मेरे मंडफ बलि दे ताके घर किन्नु देवी लेइ ||५१७१। नि सुनहू सर्व नगर नर पारिसिबजार । जो कहि है देवी वलि लेह, कुमरसि करिहो तार्क गेहू || ५१८६ ॥ मेरे नाम बजावै तूर, तार्क पेट उठे दिन सुरु | समिकत रयनु देवि ले रही, लय महाव्रतुश्रभय कुमार पदम सुर्य भगिनी भरु बीरु, मारिदत्त जस में भरु सेठि, रिपुदुद्धरु उपलदेव सूरि सुदत्त नाम सुषहाण, निर्देलिकमं खीनि भवगति, अनुकमेण पावहि सिव ठानु जसहर चन्तुि वरण सबु कह्यो, मंगलु करो जिनेसह बीर, निसुनहु नाम बाम् सुभ धातु, प्रय प्रशस्ति भए प्रमर सो सुद्ध सरीर ||५२जा ध्याइ घ्याइनु मन घरि परमेठि । सुकिल लेस सुर हर गम लेव ॥ ५२१ चढि संमेदि सिहिरि दें ध्यानु | सप्तम सुग्र सुष समूह दया धम्मं फुणि सुन नर मह्यो || ५२३।। निसुनत निर्मल होइ सरीरु | जिहि निवसत में ठौ पुरा ।। ५२४ ।। भयो सुर पति ।। ५२२ ।। को कहण समानु । गंग जमुन विच अंतर वेलि, सुष समूह सुर मानहि केलि । नगरि फैलाई जनु सुर पुरी, निवसे घनी छत्तीसी कुरी ।।५२५|| अभयचंदु तह राज निसंकृ, जनुकु सुषोडस कला मयंक 1 परजा दुखी न दीसे कोछ, घर घर वीध वषाऊ हो ||५२६|| श्रावण बहुत बसहि नहि गाम, जनु श्रासि को दोनों सिमराम । पोमावे पुर वर सुष सील, सुर समान घर मानहि कोल २५२७।२ सा कन्हर सुतु भारग साहू, जिनि धनुष रेषि लियो जसलाह । असरानी पटनु सुभ ठोक, गौड महापुरु जी भोरु ||५२८|| अगरु अंतपुर अरु सोहार, व्यारो गाव बसावन हारु । जासु नाम पडुवा मुरि तान, राज काज जान्यो सुरिता ||२६|| २३५
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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