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२३६ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि
तासु नारि देवलदे नाम, जिम ससि हर रोहिनि रति काम । सोलु महा तहि लीनो पोषि, नंदन तीनि अवतरे कोषि ॥५३०।। मेघु मेषुपर सूजस रासि, जनु कुसु सुरु ससि सुकु पकासि । जेठो थेधु साहू सुयहाणु, जासु नाम में ठयौ पुराण ॥५३१॥ पुन्न हेतु जान उपगारु, जिनवर जगिन करावण हारू । बहुत गोठि ले चाल्यो साथ, करी जात सिरी पारस पाय ।।५३२।। षरचि बहतु धनु राव न थान, घर प्रायो दियो भोयरण दारण । ताको पुत्र रत्नु अक्तर्यो, रयनायरु गुण दीसे भर्यो ।।५३३॥ भाव भगति करि दोर्ज दानु कीजै भवन गुणी को मानु । जो कुटंबु वरणो विस्तरी, वाद कथा अपर दूसरी १५३४।। राम सुतनु कवि गारवदासु, सरसुति भई प्रसन्नी जासु ।
वसत फफोतू पुर सुभ ठौर, श्रावग बहुत गुणी जहि प्रोर ।। ५३५।। रचना काल
वसुविह पूजिनि नेस्वर एहानु, ल प्रभारु दिन सुनहि पुरानु । संबतु पंवहस इकासी, भादौ सुकिल श्रवण द्वादसी ।।५३६।। सुर गुरुवारु करणु तिथि भली, पूरी कथा भई निरमली । जसहर क्रया कही सव भासि, सिष ले भाव परम गुरप।सि ।। ५३७।। वादिराज भासी गुर मूरि, तासु छाह पभनी मरि पूरि । सयल संघु नंदी सुष पूरु, जब लगि गंग जलधि ससि सुरु ।।५.३८।। मेघ माल बरस प्रसरार, बोध बधाए मंगलवार । निसुनिवि व सम तला यहू पोरि, हीनु अधिक सो लीजहु जोरि ॥५३६।। पद गुणं लिपि देई लिषाइ, अरू मूरिष सो कहो सिपाई । ता गुण वणि बहुतु कवि कहै, पुत्रु जनम् सुष संपति लहे ।।५४०।।
इति जसीपर चौपई समाप्त: ।। संवत् १९३० मांगसर सुदि ११ बार दीतवार ||
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