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________________ यशोधर चौपई २३३ पूर्व भवों के बारे में प्रश्न कुसूमावलि पर पास में राज. मेरी अरु जिम जननी ताउ । अरु जिम महिष तुरंग मुह्यो, अमिय महाद कुवज कुरौ ।।४६७।। सरमवको काको प्रवतरयो, भासि सुदत्त चोज रस भरयो । मारिवत्त सुनि भास सरि, संसी हरमि चित्त को दूरि ।।४८८।। सुदस मुनि द्वारा वर्णन गंधर्व देसु अरु पुरु गंधर्व, पेषत हरं अमर को गर्नु । तहि वैधवं राउ परचंडु, एक छत्र बुझे महिषंड ||४८६।। विझसिरी भामिनि गुण रेह, रामचंद घरि सीता अह । गंधर्व सेनु पुतिन जन्यौ, पति सुरुषु जनु सुरपति बन्यो ।।४६०|| गंधर्वा पुत्री मृग नयनि प्रति मुख जोसि चंदु बन रयरिण । मंत्री रामु नामु प्रमु तनो, राज मंत्र जो आने धनी ।।४६१।। प्रवला तासु कणक सम देह, पालक हरिण नयण ससि लेह । नंदन वेवि पयंड सरीर, नामु जितारि भोड वर वीर ॥४६२।। गंधर्वा सुव राजा तनी, सो जितारि व्याही तन बनी । सो देवर रमि चूरी पाप, दुसह जाणि मयन की ताप ॥४६३।। गंधर्व राजा पारघि गयौ, तहि बैराग भाव मन भयो। पुव वैधबंहि दीनी राजु, मापुनु किमो परम ताप काजु ।।४९४।। भतकाल करि सुव पर मोह, सो मरिण रव भयो जसोह । तहि जित सत्र पेषि रतनारि, करि वैरागु महा पुपारि ।।४६५।। जिनवर धर्म पालि गुन पाणि, राउ जसोधर उपन्यो आनि । गंधर्व वहिणि तनी सुनि वात, तपु करि सही परीषह गात ||४१६।। करि सन्नास काटि भव पापु, मारिदत्त सो जाएहि पाषु । गंधर्वा जिनि देवर रयो, समझी अम्त फाल तषु लयौ ।।४६७।। सो मारि अमिय महादे कई, रमि कूबरौ नरक सो गई।। भीवरमी भायर की तिरी, कुल कलंकु कीनो मति फिरी ॥४६मा सील मुजि अपजसु संग्रह्यो, पापी जन्म कुविज को लह्यो। मंत्री रामु रपन ससि लेह, तपु करि संबम सो सी देह ।।४६६) पयरु पयरि दोऊ प्रवतरे, नणी कहा महासुष भरे । जिनवरु पुजि धम्म पहिचाणि, सो जमैं कुसुमावलि जारिग १५००।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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