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यशोधर चौपई
उत्तर दियो तासु सुदरि, एक ससि रेषा है दूसरी । मौर मूड को प्रावे पान, गन् गावो राजा के थाण ।। २२७ । जानि बुझि तू उहि रिसाइ, मानो तो लागी व ढबाइ।
चली नारि यह उत्तर कीयो, उसही छेव राय पर दीयो ।।२२८।। कूवई के पास पहुंचना
जासु रमा की राणि हि पास, हिनि गई कूवरा पास । नाइ जगायो परप नु लागि, अति रिस भर्यो उठउ सो जागि १२२६॥ तिनि दासी भनि दीनी गारि, सुन्दरि विहसि करी मनुहारि । जो जसु भावे सो ससुईट, सत्य पाषानो जग महु दीर्छ । जो जाने जस्य मुखे, सो तस्य पायर कुणए । फलियो दषह विडवो, कावो निवाहलि दुपए ।।२३०।।
दोहा सेजह छडित वालहा वा कारण निसि जगि ।
कंठ लागि दोऊ रहे भावरि बुरी व जग्गि ।।२३।। रानी का विनय
रहि न सको तुझ विनु, सकमि न तोहि बुलाइ । पंजरु गहि राजा रखो, ज्यो तो उवरि पाइ ।।२३२॥ रानी गई तासु के संग, मनो स्वान विटारी गंग । गरुड नारि मनु मानी माग, हंसिनि जनुकु भागई काग ।।२३३।। जुनुकु पुरंदरि सेई भूत, जनु ससि रेह राह ग्रह सूत । सोहिनि जनुकु सुडह को संक, रानी रही कूवरा लंड ।।२३४|| प्रापुनु पेषि राउ पर जर्यो, जनो ध्योगिभ हुसासन परयो । काहि षडग एह घाल घाउ, फुणि चित चेसि चमक्यो राउ ॥२३५५ ॥ इह तिघ निंद दुष्ट गत लाज, णीचक बुधि कर अकाज । भलितरासिरिण विण अविचार, साहसु करतन लागे वार ॥२३६।। उत्तिमु छाडि नीचु संग्रहो, मनमहु प्रकरु अब मुह कहै । पापिणो के किम हरमि पराण, मारण कही न वेद पुराण ॥२३७।। फपुरिसु एहु कूवरौ राडा, दोबरु वुरी पोठि को हाहु । मठो पाइ पेट दिन भर, पाइन चलाहि लीदि मौ पर ।।२३।।